________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी- हिन्दी-टीका 1-1-3-1(19) 163 सचेतन जल है... खोदी हुइ भूमिमें स्वाभाविक उत्पन्न होनेके काणसे, मेंढक की 'तरह... अथवा- आकाशका जल सचेतन है, सहज रूपसे आकाशमें उत्पन्न होकर संपात होता है इसलिये, मच्छलीकी तरह... इस प्रकार यह अपकाय, कहे गये प्रकारके लक्षणवाले होनेके कारणसे जीव हि है... अब उपयोग द्वार कहते हैं... नि. 111 स्नान- जल-पान, धोना, रसोइ बनाना, सिंचन, यान (वाहन) उडुप (नौका) के गमन तथा आगमनमें अप्काय जीवोंका उपभोग होता है... अतः अप्काय जीवोंका अपभोग के अभिलाषी संसारी जीव, स्नान आदि कारणोंको लेकर अपकाय जीवोंका वध करते हैं नि. 112 यह स्नान आदि कारणों उपस्थित होने पर विषय रूप विषसे मोहित एवं निष्करुण लोग, अप्काय जीवोंकी हिंसा करते हैं... क्योंकि- उन्हें साता-सुख चाहिये, परंतु हित और अहितके विषयमें शून्य मनवाले, तथा विवेकी लोंगके परिचय के अभावमें विवेक रहित होनेके कारणसे थोडे दिनों तक रहनेवाले सुंदर यौवनके अभिमानसे उन्मत्त चित्तवाले वे संसारी जीव, अप्काय आदि जीवोंको असाता स्वरूप दुःखकी उदीरणा करते हैं... कहा भी है कि- सहज विवेक हि निर्मल चक्षु है... और दुसरा, विवेकी जीवोंके साथ निवास भी चक्षु है... यह दो प्रकारके चक्षु जिनके पास नहिं है वे वास्तवमें अंधे हैं... अब वे अंधे लोग उलटे मार्गमें चलतें हैं तो उनमें उनका क्या अपराध है ? किन्तु अंधत्व ही अपराध है... अब शस्त्र द्वार कहते हैं... नि. 113 शस्त्रके दो प्रकार 1. द्रव्य शस्त्र 2. भाव शस्त्र. द्रव्य शस्त्रके भी दो प्रकार... 1. समास से, 2. विभागसे... समास से द्रव्य शस्त्र (1) उत्-सिंचन = कूओ आदिमें से कोस आदिसे जल निकालना... (2) गालन = घन एवं कोमल वस्रोंसे छानना... (3) धावन-धोना = वस्त्र-बरतन आदि उपकरण तथा चमडे, कोश एवं कटाह आदि बरतन धोना...इत्यादि बादर अप्कायके सामान्यसे यह शस्त्र कहे है...