________________ 130 // 1-1-2 - 1 (14) // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन नि. 86 बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय घनीकृत लोकाफाशके प्रतरके असंख्यातवे भागके प्रदेश राशि प्रमाण है, और शेष (तीन) बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म अपर्याप्त और सूक्ष्म पर्याप्त यह तीनों पृथ्वीकायकी प्रत्येक राशिकी संख्या असंख्य लोकाकाशके प्रदेश प्रमाण होती है, और निर्दिष्ट क्रमसे उत्तरोत्तर अधिक अधिक होती है... कहा भी है कि पर्याप्त बादर पृथ्वीकाय - सभी से थोडा अपर्याप्त बादर पृथ्वीकाय - असंख्यगुण अधिक अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय - असंख्यगुण अधिक पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय - संख्यातगुण अधिक अब प्रकारांतरसे पृथ्वीकायकी तीन राशिका प्रमाण कहते हैं... नि. 87 जिस प्रकार प्रस्थसे कोइक मनुष्य सभी धान्यको मापे, इसी प्रकार असद्भाव प्रज्ञापनाको स्वीकार करके लोकको कुडवी करके मध्यम अवगाहनावाले पृथ्वीकाय जीवोंकी यदि कोइ स्थापना करता है तब असंख्य लोक पृथ्वीकाय से भरपुर बनेंगे। , और भी प्रकारांतरसे परिमाण कहते हैं... नि. 88 लोकाकाशके एक एक प्रदेशमें यदि पृथ्वीकायकी तीनों राशिमें से कोई एक राशिके जीवोंको एक एक स्थापित करें तब असंख्य लोकमें समाएंगे... अब कालसे पृथ्वीकाय का प्रमाण बताते हुए क्षेत्र और कालके सूक्ष्म और बादर स्वरूपको कहते हैं... नि. 89 समय स्वरूप काल सूक्ष्म है, और क्षेत्र तो कालसे भी अधिक सूक्ष्म है... वह इस प्रकार- एक अंगुल प्रमाण क्षेत्रके आकाश प्रदेशोंको यदि एक एक समयमें एक एक प्रदेशका अपहार (ग्रहण) करें तब असंख्य उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल पसार हो जाय... इस कारणसे कहते हैं कि- कालसे क्षेत्र सूक्ष्मतर है...