________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1-1-2-1(14) 129 9. संज्ञा- आहार आदि दश प्रकारकी संज्ञा भी होती है... 10. श्वासोच्छ्वास- पृथ्वीकाय जीवोंको सूक्ष्म उच्छ्वास निःश्वास भी होता है... आगममें कहा है कि... हे भगवन् ! क्या पृथ्वीकाय जीव उच्छ्वास निःश्वास करते हैं ? हे गौतम / पृथ्वीकाय जीव निरंतर उच्छ्वास एवं निःश्वास करते हैं... 11. कषाय- पृथ्वीकाय जीवोंको सूक्ष्म क्रोध आदि कषाय भी होता है इस प्रकारसे पृथ्वीकाय जीवोंको जीवके लक्षण स्वरूप उपयोगसे लेकर कषाय तकके सभी भाव होते हैं... इस प्रकार जीवोंके लक्षण समूहसे युक्त होनेके कारणसे मनुष्यकी तरह पृथ्वीकाय सचित्त याने जीवंत होते हैं... प्रश्न- यह तो आपने प्रसिद्ध से ही असिद्ध को सिद्ध किया... जैसे कि- पृथ्वीकायमें उपयोग आदि लक्षण व्यक्त नहिं जाने जा शकतें... .. उत्तर उत्तर- आपकी बात सत्य है, किंतु पृथ्वीकायको अव्यक्त तो होते हि हैं... जैसे कि- हृत् पूरकसे मिश्रित मदिराको अतिशय पीनेसे पीत्तके कारण आकुल-व्याकुल मनवाले पुरुषको अव्यक्त चेतना होती है, ऐसा होने मात्रसे हि वह ज्ञानवाला नहिं है ऐसा नहिं होता... बस इसी प्रकार पृथ्वीकायमें भी अव्यक्त चेतना की संभावना माननी चाहिये... प्रश्न- पृथ्वीकायमें तो श्वासोच्छ्वास आदि अव्यक्त चेतनावाले होते हैं, यहां मनुष्यकी तरह कोइ ऐसा चेतना का चिह्न दीखइ नहिं देता... नहिं, ऐसा नहिं है, मनुष्यमें अर्श-मांसांकुरकी तरह यहां पृथ्वीकायमें भी समान जातवाले लता का उद्भेद (प्रकटन) आदि स्वरूप चेतनाके चिह्न पाये जाते हैं... अव्यक्त चेतनावाली वनस्पतिमें जिस प्रकार चेतनाके चिह्न पाये जाते हैं वैसे हि यहां पृथ्वीकायमें भी चेतना-चिह्नका स्वीकार करना चाहिये... वनस्पतिमें तो विशिष्ट ऋतुओंमें पुष्प, फल उत्पन्न होनेसे स्पष्ट हि चैतन्य पाया जाता है... इसलिये पृथ्वीकायमें अव्यक्त उपयोग लक्षण चैतन्य प्राप्त होनेसे पृथ्वीकाय सचित्त हि है... प्रश्न- कठिन पुद्गलात्मक चारम-लता आदिमें चेतनत्व कैसे हो शकता है ? नि. 85 उत्तर- जिस प्रकार मनुष्यके शरीरमें कठिन ऐसी भी हड्डी सचेतन मानी जाती है, वैसे हि कठिन पृथ्वीकायके शरीरमें भी जीव रहा हुआ है... अब लक्षण द्वारके बाद परिमाण द्वार कहते हैं...