________________ 108 1 -1-1-9 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन असंख्य वर्ष आयुष्यवाले मनुष्योंकी योनीयां शुभ है... राजेश्वर वासुदेव चक्रवर्ती आदि... संख्यात वर्ष आयुष्यवाले मनुष्य... 3. तीर्थकर नामगोत्रवाले जीवोंकी योनीयां शुभ है... उनमें भी जो जातिसंपन्नतादि गुणवाले हैं वे शुभ है शेष सभी मनुष्योंकी योनीयां अशुभ है 4. देवोंमें किल्बिषिक को छोडकर सभी योनीयां शुभ है... 5. तिर्यंच पंचंद्रियमें गजरत्न और अश्वरत्न की योनीयां शुभ है, शेष सभी योनीयां अशुभ है... 6. एकेंद्रियजीवोंमें शुभवर्णादिवाले जीवोंकी योनीयां शुभ है.. इस संसारमें सभी जीवों ने देवेंद्र, चक्रवर्ती, तीर्थंकर तथा भाव-यतिपनेको छोडकर शेष सभी प्रकारके जन्म (भव) अनंत बार प्राप्त कीया है... दिशा-विदिशाओंमें भटकनेवाला, अपरिज्ञातकर्मा यह जीव, इन अनेक प्रकारकी 84 लाख योनीयों में उत्पन्न होता है वहां उन जीवोंको बिभत्स-जुगुप्सनीय (अशुभ) स्पर्शकी वेदना (पीडा) होती है, उपलक्षणसे मानसिक वेदना-पीडा भी होती है... अर्थात् सभी संसारी जीवोंको योनीयोंमें यह पीडा-वेदना होती हि है... यहां 'स्पर्श' पदके ग्रहणसे सभी संसारी जीवोंका ग्रहण हो जाता है, क्योंकि- स्पर्शद्रिय तो सभी संसारी जीवोंको होती हि है... यहां विशेष यह भी कहना है कि- सभी प्रकारके विरूप (अशुभ) रस गंध रूप और शब्दोंकी भी वेदना-पीडा होती है... विचित्र प्रकारके कर्मो के उदयसे विसप स्पर्शादि होते हैं... अत: विचित्र कर्मोक उदयसे अपरिज्ञातकर्मा = जीव उन उन योनीयोंमें विसप स्पर्शादिकी पीडा = वेदना को पाता है... कहा भी है कि- उन कर्मोसे पराधीन यह जीव संसार चक्रमें अनेकबार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव भेदवाले पुद्गलपरावर्तकाल तक भटकता है... नरकमें देवमें तिर्यंचयोनीमें और मनुष्य योनीमें यह जीव अरघट्ट-घटी यंत्रकी तरह शरीरको धारण करता हुआ भटकता है... नरकमें निरंतर तीव्र दुःख हि दुःख होता है... तिर्यंचगतिमें भय, भूख, तृषा और वध आदि दुःख अधिक होता है और सुख थोडा हि होता है... मनुष्योंको अनेक प्रकारके मानसिक एवं शारीरिक सुख तथा दुःख होता है... और देवोंको शरीरमें तो सुख हि सुख है किंतु मनमें कभी कभी थोडा सा दुःख होता है... कर्मों के प्रभावसे दुःखी यह जीव मोहरूप अंधकारसे अतिशय गहन इस संसार- वनके, कठिन मार्गमें अंध की तरह, भटकता हि रहता है... मोहाधीन यह जीव दुःखोंको दूर करनेके लिये और सुखोंको पानेके लिये प्राणिवध (हिंसा) आदि दोषोंका आसेवन करता है... .