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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका / // 1-1 -1-1 रहता हैं / इसलिए जब किसी वस्तु को नित्य कहा जाता है, तो उस का अभिप्राय यह है * कि वह परिणामी नित्य है, उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्त है / यही बात आगम के संबंध में समझनी चाहिए / द्रव्य रूप से आगम नित्य है, ध्रुव है, अनादि से विद्यमान हैं / परन्तु पर्याय रूप से अनित्य हैं / क्योंकि उस त्रैकालिक सत्य को अभिव्यक्त करने वाले अनन्त समय में अनन्त तीर्थकर हो चुके हैं और भविष्य काल में अनन्त तीर्थकर होते रहेंगे और अपने समय में सभी तीर्थकर उस त्रैकालिक सत्य का अर्थ रूप से उपदेश देते हैं / अतः उपदेष्टा की अपेक्षा से उस समय के तीर्थकर आगम के प्ररूषक कहे जाते हैं / जैसे वर्तमान में उपलब्ध आगम के उपदेष्टा भगवान महावीर हैं / इस दृष्टि से आगम अनित्य हैं, सादि हैं / इस तरह आगम नित्य भी हैं और अनित्य भी / प्रस्तुत सूत्र में आर्य सुधर्मा स्वामी, जम्बू अनगार से बोले-हे आयुष्मन् जम्बू ! मैंने सुना है कि उस भगवान् ने इस प्रकार प्रतिपादन किया है / इस सूत्र को सुन-पढ़ कर यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि भगवान् ने क्या प्रतिपादन किया था ? किस बात को अभिव्यक्त किया ? प्रस्तुत प्रश्न का समाधान देते हुए इस सूत्रके शेष भाग से सूत्रकार गणधर श्री सुधर्मस्वामीजी कहते हैं कि- हे आयुष्मन् जम्बू ! मैंने सुना है कि उस भगवान ने ऐसा कहा है / क्या कहा है ? इस बात को स्पष्ट करते हुए प्रस्तुत सूत्र में कहा गया कि भगवान ने बताया है कि इस प्राणि-जगत में परिभ्रमण करने वाले अनेकानेक जीव ऐसे हैं कि जिन्हें ज्ञान नहीं होता / यह प्रस्तुत सूत्र का फलितार्थ है / 'इहं' पढ़ ‘इस' अर्थ का बोधक है / यह पद सर्वनाम होने से संसार और क्षेत्र, प्रवचन, आचार एवं शस्त्र परिज्ञा आदि शब्दों का इसके साथ अध्याहार किया जाता है / क्योंकि सर्वनाम सदा संज्ञा के स्थान में प्रयुक्त होता है / जब 'इह पद के साथ संसार शब्द का अध्याहार किया जाता है, तो उक्त पद का संबंध 'एगेसिं' पद के साथ करना चाहिए / परन्तु यदि इस पद के साथ क्षेत्र, प्रवचन आदि शब्दों का अध्याहार किया जाए, तो फिर इस पद का संबन्ध प्रथम सूत्र के “अक्खायं' इस क्रिया के साथ जोड़ना चाहिए / इस तरह संबंध के भेद से अर्थ में भी भेद हो जाता है / जब प्रस्तुत पद का संबंध ‘एगेसिं' पद के साथ जोड़ेंगे तो इसका अर्थ होगा कि 'संसार में किन्हीं जीवों को संज्ञाज्ञान नहीं होता / ' और जब इसका संबंध 'अक्खायं' पद के साथ होगा तो इसका अर्थ होगा कि “हे आयुष्मन् जम्बू ! उस भगवान अर्थात् भगवान महावीर ने इस क्षेत्र, प्रवचन, आचार एवं शस्त्र-परिज्ञा में कहा है कि कई एक जीवों को ज्ञान नहीं होता / " इस तरह 'इहं' पद का ‘एगेसिं' और 'अक्खायं' पद के साथ क्रमशः संबंध-भेद से अर्थ-भेद भी प्रमाणित होता है / 'क्षेत्र' शब्द उस स्थान का परिबोधक है, भारतवर्ष या भारत में भी जिस स्थान पर भगवान ने प्रस्तुत प्रवचन किया था / भगवान-तीर्थंकरों के उपदेश को प्रवचन कहते हैं /
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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