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________________ 46 卐१ - 1 - 1 - 1 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन प्रवचन का सीधा-सा अर्थ होता है-श्रेष्ठ वाणी या विशिष्ट महापुरुषों द्वारा व्यवहृत वचन / . 'आचार' शब्द आचारांग सूत्र का परिचायक है और शस्त्र-परिज्ञा आचारांग सूत्र का प्रथम अध्ययन है / उक्त चारों शब्दों का परस्पर संबन्ध भी है / क्योंकि प्रवचन किसी क्षेत्र विशेष में ही दिया जाता है / अतः सर्व प्रथम क्षेत्र का उल्लेख किया गया / और उसके अनन्तर प्रवचन का नाम निर्देश किया गया / वह प्रवचन क्या था / इसका समाधान आचार अर्थात आचारांग इस शब्द से किया गया / और आचारांग सूत्र में भी प्रस्तुत वाक्य किस अध्ययन में कहा गया है, इस बात को स्पष्ट करने के लिए 'शस्त्रपरिज्ञा' शब्द का कथन किया गया / इस तरह चारों पदों का एक-दूसरे पद के साथ संबन्ध स्पष्ट परिलक्षित होता है / ___ 'एगेसिं' यह पद 'किन्ही जीवों को' इस अर्थ का संसूचक है / इस पद को ‘णो सण्णा भवइ' पदों के साथ संबद्ध करने पर इसका अर्थ होता है कि किन्ही जीवों को ज्ञान नहीं होता। आध्यात्मिक विकास-क्रम के नियमानुसार आत्मा में ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम के अनुरूप ज्ञान का विकास होता है / अतः जिन जीवों के ज्ञानावरणीय कर्म का जितना अधिक क्षयोपशम होता है, उनके ज्ञान का विकास भी उतना ही अधिक होता है और ज्ञानावरणीय कर्म का जितना अधिक आवरण हटाएंगे उनका ज्ञान उतना ही अधिक निर्मल होगा / और जिन जीवों का ज्ञानावरणीय कर्मगत क्षयोपशम कम है, उनका ज्ञान भी अविकसित ही रहेगा / उन्हें इस बात का परिबोध नहीं हो पाएगा कि मैं पूर्व, पश्चिम आदि किस दिशा से आया हूं ? इस विशिष्ट परिबोध से अनभिज्ञ या ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम की न्यूनता वाले किन्ही जीवों को सुत्रकार ने 'एगेसिं' इस पद से अभिव्यक्त किया है / _ 'यो सण्णा भव:' का अर्थ है-ज्ञान नहीं होता / यहां नहीं अर्थ का परिबोधक ‘णो' पद है / प्रश्न हो सकता है कि ‘णो' के स्थान पर 'अ' शब्द से काम चल सकता था / 'णो' और 'अ' दोनों अव्यय निषेधार्थक हैं / फिर यहां 'अ' का प्रयोग न करके 'णो' पद देकर एक मात्रा का अधिक प्रयोग क्यों किया ? इसका उत्तर यह है कि ‘णो' और 'अ' दोनों अव्यय निषेधार्थ में प्रयुक्त होते हुए भी समानार्थक नहीं है / दोनों में अर्थगत भिन्नता है / इसी कारण सूत्रकार ने 'अ' का प्रयोग न करके 'णो' का प्रयोग किया है / यदि ‘णो' का अर्थ 'अ' से निकल जाता तो सूत्रकार ‘णो' का प्रयोग करके शब्द का गुरुत्व नहीं बढ़ाते / इससे यह स्पष्ट होता है कि 'णो' और 'अ' दोनों अव्ययों के अर्थ में कुछ अंतर हैं / ___ ‘णो' अव्ययपद एक देश का निषेधक है और 'अ' अव्ययपद सर्व देश का निषेध करता है / जैसे-'न घटोऽघटः' इस वाक्य में व्यवहृत 'अघट' शब्द में 'घट' के साथ जुड़ा हुआ 'अ' अव्यय घट का सर्वथा निषेध करता है / परन्तु, णो अव्यय किसी भी वस्तु का सर्वथा निषेध
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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