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________________ में महामनीषी रहे है। - उन्होंने सम्पूर्ण दार्शनिक जगत को आह्वान करते हुए कहा कि - हे दार्शनिकों ! दिव्य परिणामी बनकर दुष्परिणामों, दुष्प्रयोजनों के प्रतिकारों से मुक्त हो जाओं और अनेकान्तवाद की उत्तमशैली में सम्मिलित होकर परस्पर सख्यभाव का स्वरूप निर्धारित करलो ! यही सच्ची दार्शनिक उदारता है। ___सम्पूर्ण वाङ्मय के विषय से अवगत :- आचार्य हरिभद्र का वैदुष्य विशेषताओं को लेकर वाङ्मय धरातल पर कल्पतरु बना / उनकी गहन गांभीर्य पूर्ण ज्ञान, साधना आज भी सजीवन्त उपलब्ध है। तत्कालीन जितने विषय प्रचलित थे उन पर अपना अधिकार आविष्कृत करने में अहर्निश अग्रेसर रहे। जैन शासन में श्रुत साधना की महता अद्भुत एवं अलौकिक है, जो भक्ति से सराबोर होकर श्रुत साधना में संलग्न हो जाता है वह हमेशा स्व-परहित साधक बन जाता है। भगवद् प्रदत्त त्रिपदी के आधार स्तम्भ पर रचे गये आगम ग्रंथ और आगम ग्रन्थों के आधार शिला पर रचित ग्रन्थ दोनों श्रुतमान्य एवं विद्वद्भोग्य माने गये है। उसमें भी आचार्य हरिभद्रसूरि के ग्रन्थों ने तो अनेक विद्वानों के शिर धुना दिये। धनाशा पोरवाल के द्वारा निर्मित “नलिनी गुल्म विमान" के समान राणकपुरजी के भव्य जिनप्रासाद में बहुजन प्रसिद्ध एक विलक्षणता यह है कि उस जिनप्रासाद के 1444 स्तंभ मे से किसी भी स्तंभ के पास खड़े रहो किसी न किसी प्रकार से आपको परमात्मा के दर्शन होंगे, उसी प्रकार सुरिपुरन्दर आचार्य हरिभद्रसूरि के रचित 1444 ग्रन्थों में जैन दर्शन के सिद्धान्त एवं दार्शनिक तत्त्व नेत्र समक्ष प्रतित होंगे। - दार्शनिक प्रश्नों के प्रत्युत्तर में अपना प्रखर पाण्डित्य प्रदर्शित करते हुए ज्ञानपूर्णता से छलके नहीं, न किसी को झकझोरा अपितु सभी विषयों का विद्वत्तापूर्वक अध्ययन करते हुए अपनी वाङ्मयी रचना में उन्होंने रोचक संदर्भ उपस्थित किये। __ अन्यान्य परंपराओं का परमबोध करते हुए, अपने स्वोपज्ञ ग्रन्थों में उनका समुल्लेख करते हुए, संशयापन्न * विषयों का निराकरण करते हुए वे सदैव निर्द्वन्द्व रहे। जैसे कि शास्त्रवार्ता समुच्चय में सम्पूर्ण शास्त्रीय वृतान्तों का उद्धरण देते हुए अपने मन्तव्यों को मान्यता से महत्त्वपूर्ण सिद्ध करते हुए एक अद्भुत ज्ञाता के रूप में प्रगटित हुए वैदिक परंपराओं से सम्बन्धित जितने भी सन्दर्भ उन्हें समुपलब्ध हुए उनका तल-स्पर्शीय ज्ञान बढ़ाते हुए अपने आत्म निर्ग्रन्थ मत से निराकृत बने हुए सभी को सहमत में रखने का सुन्दर अनेकान्तिक उपयोग किया है बौद्ध परंपरा में क्षणिकवाद, शून्यवाद, विज्ञानवाद, जैसे बौद्ध दर्शन प्रतिष्ठित प्रवादों को निर्विरोधी रुप से चर्चित कर स्याद्वाद सिद्धान्त को अर्चित किया है। चार्वाक जैसे दर्शन जो सभी से तिरस्कृत हुए वह भी हरिभद्र से अनुगृहीत हुआ इस प्रकार हरिभद्र का आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व V / प्रथम अध्याय | 37
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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