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________________ उसके बाद मिथ्यात्व से विमुक्त बने हुए सिद्धर्षिगणि ने 16 हजार श्लोक प्रमाण “उपमितिभवप्रपञ्च" कथा की रचना श्रीमाल के सिद्धि मण्डप में की। साध्वीजी श्री सरस्वती ने संशोधित किया। उस समय आचार्य श्री हरिभद्रसूरि अनशन कर स्वर्गवासी हुए। पाडीवालगच्छीय पट्टावली में सिद्धर्षिगणि को आचार्य गर्गाचार्य श्रीमाल के शिष्य रूप में सम्मुलेख किया है।२२ एक बार आचार्य गर्गाचार्य श्रीमाल नगर में आये। वहाँ धनी नाम का श्रेष्ठी जैन श्रावक रहता था, उसके घर सिद्ध नामका राजपुत्र था, उसने गर्गाचार्य के पास संयम स्वीकार किया। अत्यंत तर्क बुद्धि से युक्त वह एक . बार कहता है कि इससे भी श्रेष्ठ तर्क है अथवा नहीं। गर्गाचार्य ने कहा बौद्ध मत में है। यह सुनकर वहाँ जाने के लिए तैयार हो गया। आचार्यश्री ने कहा वहाँ मत जाओ। श्रद्धा से भ्रष्ट हो जाओगे, तो भी यहाँ अवश्य आऊँगा। चला गया। सम्यक्त्व रहित होकर आया। गर्गाचार्य ने समझाया, पुनः गया। इस प्रकार बार-बार गमनागमन करने लगा। तब गर्गाचार्य ने विजयानन्दसूरि परम्परा के शिष्य हरिभद्रसूरि बौद्धमत के प्रकाण्ड ज्ञाता को विनंति की, कि सिद्ध स्थिर नहीं बन रहा है। हरिभद्र ने कहा-कुछ उपाय करूँगा। आचार्य श्री ने उसे समझाने हेतु सतर्क "ललितविस्तरावृत्ति" की रचना की। हरिभद्र ने अपना अन्तिम समय जानकर गर्गाचार्य को ग्रन्थ समर्पित करके स्वयं अनशन करके देवलोक में गये। तत्पश्चात् कुछ समय के बाद वह आया। गर्गाचार्य ने वह वृत्ति उसको दी। उसने उस वृत्ति को पढ़ी और अत्यंत खुश हो गया और बोल उठा-अहो परम विद्वान् है आ. हरिभद्र जिसने मेरे उपकार के लिए यह वृत्ति बनायी। इस प्रकार सम्यक्त्व को प्राप्त करके जिनवचन में अपने मन को . भावित बनाकर भव्य आत्माओं को बोध देते हुए उग्र तपश्चर्या करते हुए पृथ्वीतल पर विचरने लगे। ___ ग्रंथ रचना के मतभेद :- आचार्य प्रवर हरिभद्रसूरि ने जैनशासन में अनेकविध उपकार किये है, फिर भी सभी में प्रधान स्थान “साहित्य रचना" है उनके द्वारा रचित साहित्यराशि विशेषत: विवेचनीय है। बहुत लोग 1400 ग्रंथ रचना स्वीकार करते है। कुछ लोग 1440 और कितनेक 1444 मानते है वह इस प्रकार१. श्रीमद् अभयदेवसूरि पञ्चाशक टीका में 1400 प्रकरण बताते है।२३ 2. श्रीमद् मुनिचंद्रसूरि उपदेश टीका में 1400 प्रकरण बताते है। 3. श्रीमद् वादिदेवसूरि स्याद्वाद रत्नाकर में 1400 प्रकरण बताते है। . 4. श्रीमद् मुनिरत्नसूरिअममस्वामि चरित्र में 1400 प्रकरण बताते है। 5. श्रीमद् प्रद्युम्नसूरि समरादित्य संक्षेप प्रशस्ति में 1400 प्रकरण बताते है।४ 6. श्रीमद् मुनिदेवसूरि शान्तिनाथचरित्र महाकाव्य में 1400 प्रकरण बताते है।२५ 7. श्री गुणरत्नसूरिकृत तर्करहस्यदीपिका षड्दर्शन समुच्चय बृहद् टीका में 1400 प्रकरण बताते है। 8. श्रीमद् कुलमण्डनसूरि विचारामृत संग्रह में 1400 प्रकरण बताते है। 9. द्वितीय मत राजशेखरसूरि प्रबन्ध कोशमें 1440 प्रकरण बताते है।२६ | आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIII प्रथम अध्याय | 14
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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