________________ तृतीय मत 1. श्री स्त्नशेखरसूरि श्राद्धप्रतिक्रमणार्थदीपिकाख्यटीका में 1444 2. अञ्चलगच्छ पट्टावलि में 1444 3. श्री विजयलक्षग्मी सूरिरुपदेशप्रासादे तृतीयस्तम्भे 144427 7. समय :- आचार्य हरिभद्रसूरिने अनेकविध ग्रन्थों की रचना की, किन्तु किसी भी ग्रन्थ रचना में समय का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त न होने के कारण उनका समय विद्वानों के बीच भारी चर्चा का विषय बन गया है। हरिभद्रसूरि के समय को निश्चित करने के लिए जितनी सामग्री उपस्थित है इससे यह ज्ञात होता है कि इसमें दो मत प्राचीन है एवं एक मत अर्वाचीन है। प्रथम मत हरिभद्रसूरि विक्रम सं 585 में स्वर्गवासी हुए इस मत में अनेक प्रमाण उपलब्ध है जिसमें यह गाथा मुख्य है। पंचसए पशसीए, विक्कमकालओ झत्ति अत्थमिओ। हरिभद्रसूरिसरो भवियाणं दिसउ कल्लाणं // 28 यह गाथा वि. सं 1330 में श्री मेरुतुङ्गसूरि द्वारा रचित "प्रबन्ध-चिन्तामणि" नामक ग्रन्थ में है, जिसके कारण इस मत की प्राचीनता सिद्ध होती है। यद्यपि कुछ ग्रन्थकारों ने वि.सं. 555 वर्ष में भी हरिभद्रसूरि के स्वर्गवास का कथन किया है फिर भी विक्रम की छट्ठी शताब्दी तो प्रायः सर्वमान्य है। मेरुतुंगसूरि ने विचारसार प्रकरण में वि. सं. 585 का उल्लेख किया है। (1) पंचसए पणसीए विक्कमकालाउ झत्ति अत्थमिओ। .. हरिभद्रसूरि सूरो निव्वुओ, दिसउ सिवसुक्खं // 29 (2) प्रद्युम्नसूरि ने विचारसार प्रकरण में 585 समय लिखा है। पंचसए पणत्तीए, विक्कमभूवाओ झत्ति अत्थमओ। हरिभद्रसूरि सूरो धम्मरओ देउ मुक्खसुहं / (3) समयसुंदरगणि गाथासहस्रम् में पंचसए पणतीस विक्कमकालाउ झत्ति अत्थमओ हरिद्रसूरि सूरो निव्वुओ दिसउ सिवसोक्खं / / (4) कुलमण्डनसूरि विचारमृत संग्रह में / वीरनिर्वाण सहस्त्रवर्षे पूर्वश्रुतं व्यवच्छिन्नं श्री हरिभद्रसूरयस्तदनु पञ्चपञ्चाशता वर्षे दिवं प्राप्ताः / (5) हरिभद्रसूरि रचित लघुक्षेत्र समासवृत्ति में लघुक्षेत्र समासस्य वृत्तिरेषा समासत: रचिताऽबुधबोधार्थ - श्री हरिभद्रसूरिभिः / पञ्चाशीतिकवर्षे विक्रमतो व्रजति शुक्ल पञ्चम्याम् शुक्रस्य शुक्रवारे पुष्ये शस्ये भनक्षत्रे // 30 [आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIIIIII प्रथम अध्याय