SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 521
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेघोदय देखकर भविष्य काल में पानी बरसने का अनुमान / यहाँ कारण शब्द उन्नतत्व, घनत्व आदि धर्मों का सुचक है। जैसे कि - ये मेघ वृष्टि अवश्य करेंगे क्योंकि ये अत्यन्त घड़घड़ाकर गम्भीर गर्जना कर रहे है। बहुत काल तक स्थिर रहनेवाले है, शीघ्र ही हवा में उड़ने वाले नहीं है। तथा उन्नत और सघन है जो मेघ उक्त विशिष्टता रखते है वे अवश्य बरसते है। जैसे कि पहले देखे गये बरसने वाले मेघ, ये मेघ उसी प्रकार के है इसलिए अवश्य बरसेंगे। (2) शेषवत् - शेष अर्थात् कार्य। कार्य से कारण के अनुमान को शेषवत् कहते है। जैसे नदी की बाढ़ देखकर ऊपरी देशो में हुई वृष्टि का अनुमान करना। यहाँ कार्य शब्द से कार्य के धर्मभूत का ग्रहण करना है। इसका प्रयोग इस प्रकार है - इस नदी के ऊपरी प्रदेश में वृष्टि हुई है क्योंकि इसका प्रवाह बहुत तेज है, फल, फेन तथा किनारे की लकड़ी आदि को बहाने वाला तथा पूर्ण है जैसे कि बाढ़वाली नदी। (3) सामान्योदृष्ट - कार्य और कारण से भिन्न ऐसे किसी भी अविनाभावी साधन से साध्य का ज्ञान करना सामान्योदृष्ट है। जैसे बगुला को देखकर जल का अनुमान करना। प्रयोग - जिसमें बगुला सदा रहते है ऐसा यह प्रदेश जलवाला है। क्योंकि यहाँ बगुला पाये जाते है। जैसे कोई बगुला वाला जलाशय। ____ अथवा किसी वृक्ष ऊपर दिखाई देनेवाले सूर्य को कालान्तर में पर्वत आदि पर देखकर उसकी गति का अनुमान करना भी सामान्योदृष्ट है। प्रयोग - समीपवर्ती वृक्ष पर दिखाई देनेवाले सूर्य का थोड़ी ही देर में दूरवर्ती पर्वत पर दिखाई देना गति का अविनाभावी है। अर्थात् वह गति के बिना नहीं हो सकता है। क्योंकि वह एक जगह देखी गयी वस्तु का अन्यत्र दर्शन है जैसे एक जगह देखे गये देवदत्त का अन्यत्र दिखाइ देना। कोई व्याख्याकार सामान्यतोदृष्ट का स्वरूप इस प्रकार भी कहते है कि रूप देखकर तत्समानकालवर्ती स्पर्श का अनुमान करना सामान्यतोदृष्ट है। यहाँ रूप न तो स्पर्श का कार्य ही है न कारण ही। प्रयोग - इस वस्त्र का अमुक स्पर्श होना चाहिए, क्योंकि इसमें अमुक रूप पाया जाता है, उस प्रकार के रूप-स्पर्शवाले अन्यवस्त्र की तरह अथवा - एक आम के वृक्ष को फलों से लदा हुआ देखकर जगत के सभी आमों के वृक्षों में बौर आ गये है। क्योंकि वे आम के वृक्ष है जैसे कि सामने दिखाई देनेवाला आम का वृक्ष। (1) अथवा पूर्ववत् - पूर्व अर्थात् प्राक्कालीन व्याप्ति को ग्रहण करनेवाले प्रत्यक्ष के तुल्य विषयवाला अनुमान। (2) शेषवत् - परिशेषानुमान - प्रसक्त अर्थात् जिनमें प्रकृत पदार्थ के रहने की आशंका हो सकती है उन पदार्थों का निषेध करने पर जब अन्य किसी अनिष्ट अर्थ की संभावना न रहे तब शेष बचे हुए इष्ट पदार्थ की प्रतिपत्ति करना परिशेषानुमान है। (3) सामान्योदृष्ट - जहाँ धर्मी और हेतु तो प्रत्यक्ष हो तथा साध्य धर्म सदा अप्रत्यक्ष रहता हो वहाँ सामान्योदृष्ट अनुमान होता है। इस प्रकार कारण के भेद से तीन प्रकार का लिंग प्रत्यक्ष होकर लिंगी विषयक प्रमिति [ आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VI सप्तम् अध्याय | 459
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy