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________________ (2) न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान - जिसके उदय से न्यग्रोध (वटवृक्ष) के आकार में नाभि के ऊपर के सब अवयव समचतुरस्र संस्थान रूप समुचित प्रमाण से युक्त होते है पर नीचे के अवयव ऊपर के अवयवों के अनुरूप नहीं होते है। उसे न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान कहते है। ___ (3) सादि संस्थान नामकर्म - जिसके उदय से नाभि के नीचे के सब अवयव समचतुरस्र संस्थान स्वरूप सुंदर पर उपर का भाग तदनुरूप नहीं होता है उसे सादि संस्थान नामकर्म कहा जाता है। सादि का अर्थ शाल्मली वृक्ष होता है। उसके आकार में अवयवों की रचना होने से सादि या साचि संस्थान कहा गया है। तत्त्वार्थ राजवार्तिक और धवला' आदि में जहाँ इसका उल्लेख ‘स्वातिसंस्थान' के नाम से किया गया है वहां स्वाति से . सांप की वामी या शाल्मली वृक्ष को भी ग्रहण किया गया है। अभिप्राय वही रहा है। (4) कुब्जसंस्थान नामकर्म - जिसके उदय से शिर ग्रीवा व हाथ-पांव आदि के यथोक्त प्रमाण में होने पर वृक्ष उदर व पीठ आदि तदनुरूप न होकर प्रचुर पुद्गल संचय से युक्त होते है उसे कुब्जसंस्थान नामकर्म कहते है। (5) वामन संस्थान नामकर्म - जिसके उदय से वक्ष और पेट आदि योग्य प्रमाण में होते हैं, पर हाथ- . गांव छोटे होते है वह वामन संस्थान नामकर्म कहलाता है। (6) हुण्डक संस्थान नामकर्म - जिसके उदय से शरीर के सब ही अवयव ठीक प्रमाण में न होकर बेडोल होते है उसका नाम हुण्डकसंस्थान है। पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य के छहों संस्थान होते है। देव के समचतुरस्र संस्थान और नारकी तथा विकलेन्द्रिय के हुण्डकसंस्थान होता है।१८६ वर्णनामकर्म - जिस कर्म के उदय से शरीर में कृष्ण, गौर आदि वर्ण होते है या जीव का शरीर कृष्ण आदि वर्णों वाला बनता है उसे वर्णनामकर्म कहते है।८७ वर्ण नामकर्म के पाँच भेद है - 'स्थानांग'१८८ तथा ‘कर्मग्रंथ' 189 में भी बताये है। (1) कृष्णवर्णनाम (2) नील वर्णनाम (3) लोहित वर्णनाम (4) हारिद् वर्णनाम (5) श्वेत वर्णनाम। जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर कोयले जैसा काला हो उसे कृष्ण नामकर्म कहते है। इसी प्रकार शेष कर्म के जानना। 190 गंध नामकर्म - जिस कर्म के उदय से शरीर की शुभ या अशुभ गंध हो उसे गंध नामकर्म कहते है।१९१ इसके दो भेद है - 1. सुरभि गंध, 2. दुरभि गंध।१९२ जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर की कपूर, केशर, कस्तुरी आदि पदार्थों जैसी सुगंध होती है, उसे सुरभि गंध नामकर्म कहते है। जिस कर्म के उदय से जीव के शरीर की लहसुन, सडे-गले पदार्थों जैसी बुरी गंध हो, वह दुरभि गंध नामकर्म है।१९३ रसनामकर्म - जिस कर्म के उदय से शरीर तिक्त, मधुर आदि शुभ-अशुभ रसों की उत्पत्ति हो वह रस नामकर्म है। रस नामकर्म के पांच भेद है - 1. तिक्त रसनाम, 2. कटु रसनाम, 3. कषाय रसनाम, 4. आम्ल' [आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIIIIIII व पंचम अध्याय | 356]
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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