________________ प्राक्कथन ____दर्शन सत्य के साक्षात्कार का एक माध्यम है। सत्य क्या है ? यह एक जटिल प्रश्न है। दर्शन जगत में सत्य को लेकर काफी बौद्धिक व्यायाम हुए है। आमतौर पर यह मान्यता है कि, 'जो जैसा है वैसा उद्धरित होना ही सत्य है।' 'वेदान्त दर्शन में एकमेव परमार्थ सत् अद्रयम् ब्रह्म' कहा गया है। अर्थात् वेदान्त दर्शन के अनुसार एकमात्र पारमार्थिक सत्य ब्रह्म है जो एक है। 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः' अर्थात् वेदान्त के अनुसार एक मात्र ब्रह्म ही सत्य है और जगत् मिथ्या है तथा आत्मा और ब्रह्म एक है। जैन दर्शन के अनुसार, 'उत्पादव्ययधोव्य लक्षणं सत्' - अर्थात् जिसमें उत्पत्ति विनाश एवं नित्यता निहित है वह सत्य है / जैन दर्शन षड्द्रव्यों को सत्य मानता और आत्मसाक्षात्कार को परम सत्य मानता है। मूल रूप से यह कहना उचित होगा कि दर्शन जगत में आत्मा या ब्रह्म का साक्षात्कार ही सत्य है और इसी सत्य को जो उद्धरित करता है, वही दर्शन है / उपनिषद् में कहा गया है - हिरण्यमयेव पात्रेण सत्यस्यापहितं मुखम्। तत्त्वं पूषनपावृषु सत्य धर्मार्थं दृष्टये // अर्थात् सत्य का मुख सोने के पात्र से ढका हुआ है। अतः हे पूषन् ! सत्य धर्म को प्रकाशित करने के लिए उस पात्र को हटा दीजिए। / अस्तु यह कहना उचित है कि दर्शन सत्य को उद्घाटित करता है। जैन दर्शन इसी सत्य की मीमांसा करता है। समय-समय पर अनेक जैनाचार्य ने अपने-अपने योगदानों से जैनदर्शन को समृद्ध किया है। इन्हीं आचार्यों में एक प्रकृष्ट नाम है - आचार्य हरिभद्र का / आचार्य हरिभद्र ने जैन दर्शन के प्रायः प्रत्येक पक्ष को अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। संक्षेप में उनके दर्शन के वैशिष्ट्य के संदर्भ में निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किये जा सकते हैं। 1. उन्होंने दर्शन को आत्मसाक्षात्कार का एक प्रमुख माध्यम माना है। 2. दर्शन को दायरे से मुक्त किया तथा उसको असीम बनाने की कोशिश की। 3. दर्शन को हठवाद और आग्रहवाद से मुक्त किया। 4. मेरा दर्शन ही उच्च है और अन्य दर्शन निम्न है, - इस प्रकार के विचारों के स्थान पर तार्किकता को महत्त्व दिया है। 5. उनके अनुसार दर्शन मानसिक जिज्ञासा की निवृत्तिमात्र नहीं है अपितु दर्शन मोक्ष ___प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। 6. दर्शन में मतवाद के स्थान पर 'वास्तविकतावाद' या सत्यवाद को प्रतिष्ठित किया।