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________________ नहीं देख सकते वह तो दिव्य ज्ञानालोक से सर्वज्ञ देख सकते है। हम तो मात्र आगम वचन से ही जान सकते है उसकी आकृति कभी नष्ट नहीं होती है और न वह स्वयं नाश होता है। द्रव्यास्तिनय की अपेक्षा से वह तदवस्थ ही रहता है। अतएव उसे नित्य माना गया है और उससे छोटा कुछ भी नहीं होने से उसे परमाणु कहते है। 'सूक्ष्म सर्वलघुरतीन्द्रियः नित्यश्च तद्भावाव्ययतयाभवति परमाणुरेवभूत इति।२९२ उक्त पाँच रसो में से कोई भी एक रस, दो प्रकार के गन्ध में से कोई भी एक गन्ध पाँच प्रकार के वर्ण में से कोई भी एक वर्ण और शेष चार प्रकार के स्पर्शों में से दो प्रकार के स्पर्श-शीत-उष्ण में से एक और स्निग्धरुक्ष में से एक ये गुण उस परमाणु में रहा करते है। हमारे दृष्टि के विषय बननेवाले जितने भी कार्य है उनको देखकर परमाणु का बोध होता है क्योंकि यदि परमाणु न होतो कार्य की भी उत्पत्ति नहीं हो सकती। अतः कार्य को देखकर कारण का अनुमान होता है। परमाणु अनुमेय है और उसके कार्य लिङ्ग साधन है। परमाणु की नित्यता कारणता तथा उपरोक्त गुणों की संस्थिति लोकप्रकाश२९३ तथा पञ्चास्तिकाय,२९४ षड्दर्शन समुच्चय टीका२९५ में भी कही गई है। पुद्गल के इन भेदों में से परमाणु बंध रहित तथा असंश्लिष्ट रहा करते है, जब उन परमाणुओं का संश्लेष होकर संघात बन जाता है तब उसको स्कन्ध कहते हैं। स्कन्ध भी दो प्रकार का होता है। बादर और सूक्ष्म / बादर स्कन्धों में आठों ही प्रकार के स्पर्श रहा करते है परन्तु सूक्ष्म स्कन्धों में चार स्पर्श ही रहते है। स्कन्धों की उत्पत्ति तीन प्रकार से होती है। संघात, भेद और संघातभेद / (1) संघात - इन तीनों कारणों से द्विप्रदेशादिक स्कन्धों की उत्पत्ति होती है। दो परमाणुओं से द्विप्रदेश स्कन्ध की प्राप्ति होती है और द्विप्रदेश एवं एक परमाणु से त्रिप्रदेश स्कन्ध की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार संख्यात असंख्यात प्रदेशों के स्कन्धों से उतने ही प्रदेशवाले स्कन्ध उत्पन्न होते है। (2) भेद - उसी प्रकार भेद में बडे स्कन्ध का भेद होकर छोटा स्कन्ध उत्पन्न होता है और इस प्रकार सबसे छोटा द्विप्रदेश स्कन्ध होता है। (3) संघातभेद - कभी-कभी एक ही समय में संघात और भेद दोनों के मिल जाने से द्विप्रदेशादिक स्कन्धों की उत्पत्ति हुआ करती है। क्योंकि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एक तरफ से संघात होता है और दूसरी तरफ से भेद होता है। इस तरह एक ही समय में दोनों कारणों के मिल जाने से जो स्कंध बनते है वे संघातभेद कहे जाते है। स्कन्धों की उत्पत्ति के जो तीन कारण बताये है वे उसमें परमाणु की उत्पत्ति भेद से ही होती है संघात से नहीं। पहले जैसे कि परमाणु को कारण रूप कहा गया है वह द्रव्यास्तिक नय से ही समझना चाहिए, पर्यायास्तिक नय से तो परमाणु भी कार्यरूप होता है क्योंकि द्वयणुकादिक से भेद होकर उसकी उत्पत्ति भी होती है।२९६ दिगम्बराचार्य ने कुन्दकुन्द विरचित पंचास्तिकाय की तात्पर्यवृत्ति में भी परमाणु को कार्यरुप एवं कारणरूप कहा है। [ आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIII IIIIIINA द्वितीय अध्याय | 142)
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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