________________ है। अतएव ये भी उसी के धर्म है। न भिन्न द्रव्य है और न भिन्न द्रव्य के परिणाम है। शब्दादिक के समान ये भी पुद्गल ही हैं। क्योंकि उक्त स्पर्शादिक सभी गुण पुद्गलों में रहा करते है और इसीलिए पुद्गलों को तद्वान कहा गया है। रूपादिक पुद्गल के लक्षण है / जो-जो पुद्गल होते है। वे-वे अवश्य रूपवान् होते है और जो-जो रूपादिवान् होते है वे-वे पुद्गल हुआ करते है। अतएव शब्दादिक या तम आदि को भी पुद्गल का ही परिणाम बताया है, क्योंकि इन विषयों में अनेक मतभेद है। कोई शब्द को आकाश का गुण, कोई विज्ञान का परिणाम और कोई ब्रह्म का विवर्त मानते है। किन्तु यह सब मिथ्या कल्पना है, न्याय-शास्त्रों में इसकी विशद चर्चाएँ मिलती है। शब्द मूर्त है यह बात युक्ति, अनुभव और आगम के द्वारा सिद्ध है। यदि वह आकाश का गुण होता, तो नित्य व्यापक होता और मूर्त इन्द्रियों का विषय नहीं हो सकता था। न दीवाल आदि मूर्त पदार्थों द्वारा रुक सकता था। आजकल लोक में भी देखा जाता है कि शब्द की गति इच्छानुसार चाहे जिधर की जा सकती है, और आवश्यकता अथवा निमित्त के अनुसार उसको रोक कर भी रखा जा सकता है जैसे कि ग्रामोफोन की चूडी में चाहे जैसा शब्द रोककर रख सकते है और उसको चाहे जब व्यक्त कर सकते है। टेलिग्राम या वायरलेस - बेतार के द्वारा इच्छित दिशा और स्थान की तरफ उसकी गति भी हो सकती है। इससे और आगम के कथन से सिद्ध है कि शब्द अमूर्त आकाश का गुण नहीं किन्तु मूर्त पुद्गल का ही परिणाम है। इसी प्रकार अन्धकार के विषय में भी मतभेद है / कोई-कोई तम को द्रव्यरूप न मानकर अभावरूप मानते है। वह भी ठीक नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार तम को प्रकाश के अभावरूप कहा जा सकता है, उसी प्रकार प्रकाश को तम के अभावरूप कहा जा सकता है। दूसरी बात यह भी है कि तुच्छभाव कोई प्रमाणसिद्ध विषय नहीं है। अतएव प्रकाश को यदि अभावरूप भी माना जाए, तो भी किसी न किसी वस्तुस्वरूप ही उसको कहा जा सकता है उसके नील वर्ण को देखने से प्रत्यक्ष द्वारा ही उसकी पुद्गल परिणामता सिद्ध होती है। अतएव तम भी पुद्गल का ही परिणाम है। यह बात सिद्ध है, इसी तरह अन्य परिणामों के विषय में भी समझना चाहिए। - लोकप्रकाश में पुद्गल के दस परिणाम बंधन, गति, संस्थान, भेद, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु तथा शब्द बताये है। ____उपरोक्त पुद्गल दो प्रकार के होते है। अणु और स्कन्ध / अणु का लक्षण पूर्वाचार्यों ने इस प्रकार किया है - ‘कारणमेव तदन्त्यम्' वस्तु दो भागों में विभक्त होती है। कारणरूप और कार्यरूप में। जिसके विद्यमान होने पर ही किसी की उत्पत्ति होती है और न होने पर नहीं होती है। उसको कारण कहते है और जो इसके विपरीत हो उसको कार्य कहते है। तदनुसार परमाणु कारण ही है। क्योंकि उसके होने पर ही स्कन्धों की उत्पत्ति होती है अन्यथा नहीं। यदि परमाणु न हो तो स्कन्ध रचना नहीं हो सकती है। क्योंकि परमाणु से छोटा और भाग नहीं होता है। अतएव परमाणु ही कारण द्रव्य है और द्वयणुक से लेकर महास्कन्ध तक जितने भेद है वे सब कार्य द्रव्य है - परमाणु सबसे अन्त्य है उसका कोई भेद नहीं है वह इतना सूक्ष्म है कि हम सभी अपनी चर्मचक्षुओं से उसको | आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIII द्वितीय अध्याय | 141