________________ | अस्तिकाय द्रव्य अस्तिकाय जैन दर्शन की अपनी निराली अवधारणा है। जिस पर किसी दर्शन का मत मतान्तर अथवा मान्यता नहीं है। जो अस्ति' शब्द क्रियावाचक बनकर ही सम्प्रचलित था उसे ही कर्तृत्व में स्वीकृत करने हेतु जैनाचार्यों ने व्याकरण के विद्वानों के वचनों से प्रदेश अर्थ प्रचलित करके नियम को एक अभिनव मोड़ दिया है। ऐसा 'अस्ति' शब्द का अर्थ अन्यत्र सुलभ नहीं है, यह तो जैनाचार्यों की ही दूरदर्शिता है। अस्ति शब्द को यदि क्रियापरक स्वीकार करते है तो केवल वर्तमान से जुडे रहते है। भूतकाल से वंचित बन जाते है। तथा अनागत से अवांछित रहेंगे। शास्त्र जगत में अस्ति शब्द निपातनार्थक बनकर त्रिकालबोधक हो जाता है। ऐसा महावैयाकरणों का विनिश्चय है। जैसे कि - _ 'अस्तीत्ययं त्रिकालवचनो निपातः, अभूवन् भवन्ति, भविष्यन्ति चेति भावना।'१६१ इससे अस्ति त्रिकालबोधक अर्थवाला सिद्ध होकर जैन वाङ्गमय में अस्तिकाय संयोजित हुआ है। शाकटायन न्यास ने भी अस्ति' शब्द को निपात अर्थ में वाचित किया है। 'अस्तीति निपातः सर्वलिङ्गचनेष्विति'१६२ आचारांग की टीका में अस्ति शब्द निपातवाचक कहा है - ‘अस्तिशब्दश्चायं निपातस्त्रिकाल विषयः'१६३ इसी प्रकार अस्ति' शब्द निपातवाचक भगवती टीका आदि में भी मिलता है। यह अस्तिकाय शब्द आगमों में जब जीव-अजीव का निरूपण करते है तब धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आदि में अस्तिकाय शब्द का प्रयोग मिलता है। किन्तु उनके स्थान पर द्रव्य, तत्त्व और पदार्थ शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है जो आगमों की प्राचीनता का प्रतीक है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय इन तीनों को देश, प्रदेश, स्कंध आदि भेदों में विभक्त किया है। किन्तु अस्तिकाय शब्द का अर्थ कहीं पर भी मूल आगम में नहीं दिया गया है। लेकिन उत्तरवर्ती आचार्यों ने आगमों की टीकाओं, वृत्तियों, चूर्णियों, अन्य शास्त्र ग्रंथों में अस्तिकाय शब्द को लेकर विचार-विमर्श किया है जो आज भी सर्वोपरी मान्य है। ___ व्युत्पत्ति की दृष्टि से अस्ति+काय अर्थात् अस्ति यानि प्रदेश और काय अर्थात् संघात वह अस्तिका है। अस्तिकाय की इस प्रकार की व्याख्या नवांगी टीकाकार आचार्य अभयदेवसूरि ने भगवती की टीका में क. है। जिसका साक्षी रूप पाठ इस प्रकार है - 'अस्ति शब्देन प्रदेशा उच्यन्ते अतः तेषां काया राशयः अस्तिकाय अथवा अस्ति इत्ययं निपातः कालत्रयाभिधायी ततोऽस्तीति सन्ति आसन् भविष्यन्ति च काया प्रदेशराशयः ते देशैराशय। 164 __ अस्ति शब्द का अर्थ प्रदेश होता है। इसीलिए उनके समूह को अस्तिकाय कहते है अथवा अस्ति यह शब्द निपात है और तीनों कालों का बोधक है। अस्ति वर्तमान में, भूतकाल में और भविष्य में भी रहता है। उन आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व INA द्वितीय अध्याय | 115]