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________________ पृ. 9 पृ. 30 31. जयसुंदर विजयजी लिखित शास्त्रवार्ता समुच्चय की प्रस्तावना में 32. कुवलयमाला की प्रशस्ति में यह श्लोक मिलता है 33. उपमिति भवप्रपंच की समाप्ति में यह श्लोक प्राप्त होता है। 34. शिष्यहिता नामावश्यटीका की प्रशस्ति में यह उद्धरण मिलता है। 35. पं. कल्याणविजयजी लिखित धर्मसंग्रहणी की प्रस्तावना 36. पंचसूत्रव्याख्या की प्रशस्ति में 37. उपदेश पद की प्रशस्ति में 38. धर्मसंग्रहणी प्रथमभाग 39. शास्त्रवार्ता समुच्चय प्रथमस्तबक 40. श्रीमद् हरिभद्रसूरि सूत्रिता नन्दीवृत्ति 41. योगदृष्टि समुच्चय 42. योगशतक 43. सर्वज्ञ सिद्धि 44. धर्मबिन्दु मूल 45. योगदृष्टि समुच्चय 46. प्रमाणनय तत्त्वालोक 47. श्री ध्यानशतक 48. योगबिन्दु हरिभद्रकृतटीका 49. धर्मसंग्रहणी की टीका प्रथम भाग 50. शास्त्रवार्ता समुच्चय प्रथम स्तबक 51. वही 52. धर्मसंग्रहणी प्रथम भाग 53. शास्त्रवार्ता समुच्चय प्रथम स्तबक 54. धर्मसंग्रहणी प्रथम भाग 55. योगशतक 56. धर्मसंग्रहणी प्रथम भाग 57. पातञ्जलयोगसूत्र प्रथम पाद 58. शास्त्रवार्ता समुच्चय 59. योगबिन्दु 60. श्रीमद् हरिभद्रसूरि सूत्रिता नन्दीवृत्ति 61. दशवैकालिक मूल सूत्र 62. सूत्रकृतांग 63. संबोध प्रकरणम् गाथा 3 श्लोक 1 पृ.१ श्लो .1 गा. 1 श्लो. 4 सूत्र 35, 36, 37 श्लो. 99 अ. 4 सू. 1 (4/1) गा. 2 श्लो. 3. पृ. 4 पृ. 70 श्लो.८८ ,. श्लो. 90 गा. 35 श्लो. 14 गा. 135 , गा. 94 गा. 43 सू. 23 (1/23) श्लो. 206 श्लो . 2 पृ.१ 4/10 1/12/11 गा.३ आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VI प्रथम अध्याय | 78
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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