________________ श्रीजैनधर्मवरस्तोत्रम् संकरहरिबहा( भा)णं, गोरी लच्छी जहेव बंभाणी / तइ जइ पइणो इट्ठा, तो महिला इयरहा छ छा? )ली // 4 // पावेण सवत्तिजणो, दुवा सासूनणंदमाईया / धम्मेण अनिक्कंटो, परवासो( परिवारो?) होइ महिलाणं // 5 // धण्णा ता महिलाओ, जाण न वाएइ कोवि खोज्जाइं (?) / सासूनणंदसवत्ती, ससुरो जिट्ठो य दियरो वा // 6 // सन्त्यन्यान्यपि दुःखानि, दुःसहानि परं भवेत् / सपत्नीभवदुःखाग्रे, निःस्वानध्वानडम्बरः // 7 // " अनु० ન સૂઈ નિર્ધન નૈ ધનવંત ન સૂઇ, રાજા રાજ્ય કરંત ન સૂઇ, ગણિકા ન સૂઇ, ચોર ન सू5, 55 ५२संते भोर न सू5, 56 नारी भरतार न सू5. (74 सूई) 4 ५२.४ांध्यां // 2, કઈ સૂઈ રાજાકો પૂત, કઈ સૂઈ યોગી અવધૂત.” इति // एवं कियत्यपि गते काले कल्लूका विपन्ना / यतः "हा शोचन्ति धनं नश्यन्-मूढा नायुः सदा गलत् / त्रैलोक्यैश्वर्यदानेऽपि, यल्लवोऽपि न लभ्यते // 1 // अनु० आयुर्वायुचलं सुरेश्वरधनुर्लोलं बलं यौवनं विद्युद्दण्डसमं धनं गिरिनदीकल्लोलवच्चञ्चलम् / - स्नेहं कुञ्जरकर्णतालतरलं देहं च रोगाकुलं ज्ञात्वा भव्यजनाः ! सदा कुरुत भो धर्मं महानिश्चलम् // 2 // शार्दूल. ततः क्रमेण सकलं मृतकार्यं कृत्वा निःशोको धवलो जज्ञे / अथ गतसपत्नीशल्यत्वाद् वल्लूकया धवलो वशीकृतः / सा यत् कथयति स तत् करोति / यतः "संमोहयन्ति मदयन्ति विडम्बयन्ति निर्भर्त्सयन्ति रमयन्ति विषादयन्ति / शङ्करहरिब्रह्मणां गौरी लक्ष्मी यथैव ब्रह्माणी / तथा यदि पत्युरिष्टा, ततो महिलेतरथा छागी // 4 // पापेन सपत्नीजनो दुष्टाः श्वश्रूननान्द्रादिकाः / धर्मेण च निष्कण्टकः परिवारो भवति महिलानाम् // 5 // धन्यास्ता महिला यासां न वदति कोऽपि क्षुद्राणि (?) / श्वश्रूननान्सपल्यः श्वसुरो ज्येष्ठश्च देवरो वा // 6 // 1. घोडा।