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________________ 38 ये भी पानी पीते / जब गाय सोती तो ये सोते / गाय की भाँति ही घास और पत्तों का ये आहार करते थे। मज्झिमनिकाय' और ललितविस्तर प्रभृति ग्रन्थों में भी इन गोव्रतिक साधुओं का उल्लेख मिलता है। 3. गृहिधर्म-ये अतिथि, देव आदि को दान देकर परम आह्लादित होते थे और अपने आपको गृहस्थ धर्म का सहीरूप से पालन करनेवाला मानते थे। 4. धर्मचिन्तक-ये धर्म-शास्त्र के पठन और चिन्तन में तल्लीन रहते थे। अनुयोगद्वार की टीका में याज्ञवल्क्य प्रभृति ऋषियों द्वारा निर्मित धर्म-संहिताओं का चिन्तन करनेवालों को धर्म चिन्तक कहा है। 5. अविरुद्ध-देवता, राजा, माता-पिता, पशु और पक्षियों की समानरूप से भक्ति करनेवाले अविरुद्ध साधु कहलाते थे। ये सभी को नमस्कार करते थे, इसलिए विनयवादी भी कहलाते थे / आवश्यकनियुक्ति', आवश्यकचूर्णि', में इनका उल्लेख है / भगवतीसूत्र के अनुसार ताम्रलिप्ति के मौर्य-पुत्र तामिल ने यही प्रणामा-प्रव्रज्या ग्रहण की थी। अंगुत्तरनिकाय में भी अविरुद्धकों का वर्णन है। .. 6. विरुद्ध-ये पुण्य-पाप, स्वर्ग-नरक नही मानते थे / ये अक्रियावादी थे। 7. वृद्ध-तापस लोग प्रायः वृद्धावस्था में संन्यास लेते थे . / इसलिए ये वृद्ध कहलाते थे / औपपातिक की टीका के अनुसार वृद्ध अर्थात् तापस, श्रावक अर्थात् ब्राह्मण / तापसों को वृद्ध इसलिए कहा गया है कि समग्र तीर्थिकों की उत्पत्ति भगवान् ऋषभदेव की प्रव्रज्या के पश्चात् हुई थी। उनमें सर्वप्रथम तापस-सांख्यो का प्रादुर्भाव हुआ था, अतः वे वृद्ध कहलाये। श्रमण भगवान् महावीर के समय तीन सौ तिरेसठ पाखण्ड-मत प्रचलित थे। उन्हीं अन्य तीर्थों या तैर्थिकों में वृद्ध श्रावक शब्द भी व्यवहृत हुआ है। ज्ञाताधर्मकथा एवं अंगुत्तरनिकाय? में भी यह शब्द प्रयुक्त हुआ है / अनुयोगद्वार की टीका में भी वृद्ध का अर्थ तापस किया है। कहीं पर 'वृद्ध श्रावक' यह शब्द एक कर दिया गया है और कहीं पर दोनों को पृथक्पृथक् किया गया है। हमारी दृष्टि से दोनों को पृथक् करने की आवश्यकता नहीं है / वृद्धश्रावक का अर्थ ब्राह्मण उपयुक्त प्रतीत होता है / यहाँ पर वृद्ध और श्रावक शब्द जैन परम्परा से सम्बन्धित नहीं है। यह तो ब्राह्मणों का ही वाचक है। 1. मज्झिमनिकाय-३, पृ. 387. 2. ललितविस्तर, पृ. 248. 3. अनुयोगद्वार सूत्र, 20. 4. आवश्यकनियुक्ति, 494. 5. आवश्यकचूर्णि, पृ. 218 6. भगवती सूत्र, 3 / 1. 7. अंगुत्तरनिकाय-३, पृ. 276 8. वृद्धाः तापसा वृद्धकाल एव दीक्षाभ्युपगमात्, आदि देवकालोत्पन्नत्वेन च सकललिङ्गिनामाद्यत्वात्, श्रावका धर्मशास्त्र श्रवणाद् ब्राह्मणा: अथवा वृद्धश्रावका ब्राह्मणाः। -औपपातिक सूत्र 38 वृ०. पृ. 157 9. अण्णतीथिकाश्चरक-परिव्राजक-शाक्याजीवक-वृद्धश्रावकप्रभृतयः / - निशीथ सभाष्यचूर्णि, भाग-२, पृ. 118. 10. ज्ञाताधर्मकथा, अध्य. 15 वां. सू. 1. 11. अंगुत्तरनिकाय-हिन्दी अनुवाद भाग 2, पृ. 452. 12. अनुयोगद्वार सूत्र-२०, की टीका /
SR No.004431
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size7 MB
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