________________ की अनुमति प्रदान की थी / रसासक्ति का भी निषेध किया था। विविध आसनों का भी विधान किया था / भिक्षाचर्या का भी विधान किया था। जो भिक्षु जंगल में निवास करते हैं, वृक्ष के नीचे ठहरते हैं, श्मशान में रहते हैं, उन धतुंग भिक्षुओं की बुद्ध ने प्रशंसा की / प्रवारणा [प्रायश्चित्त], विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, कायोत्सर्ग-इन सभी को जीवन में आचरण करनेकी बुद्ध ने प्रेरणा दी / किन्तु बुद्ध मध्यममार्गी विचारधारा के थे, इसलिए जैन तप-विधि में जो कठोरता है, उसका उसमें अभाव है, उनकी साधना सरलता को लिये हुए है। हमने यहाँ संक्षेप में वैदिक और बौद्ध तप के सम्बन्ध में चिन्तन किया है, जिससे आगम-साहित्य में आये हुए तप की तुलना सहज हो सकती है। वस्तुतः प्रस्तुत आगम में आया हुआ तपोवर्णन अपने आप में मौलिकता और विलक्षणता को लिये हुए हैं। . भगवान् महावीर के समवसरण में भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक-ये चारों प्रकार के देव उपस्थित होते थे। उन देवों के वर्णन में नानाप्रकार के आभूषण, वस्त्रों का उल्लेख हुआ है। यह वर्णन, जो शोधार्थी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता का अध्ययन करना चाहते हैं, उनके लिए बहुत ही उपयोगी है / वस्त्र-निर्माण की कला में भारतीय कलाकार अत्यन्त दक्ष थे, यह भी इस वर्णन से परिज्ञात होता है। विस्तार-भय से हम यहाँ उस पर चिन्तन न कर मूल ग्रन्थ को ही देखने की प्रबुद्ध पाठकों को प्रेरणा देते हैं। साथ ही कूणिक राजा का भगवान् को वन्दन करने के लिये जाने का वर्णन पठनीय है। इस वर्णन में अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य रहे हुए हैं। भगवान् महावीर की धर्मदेशना भी इसमें विस्तार के साथ आई है। यों धर्मदेशना में सम्पूर्ण जैन आचार मार्ग का प्ररूपण हुआ है। श्रमणाचार और श्रावकाचार का विश्लेषण हुआ है। उसके पश्चात् गणधर गौतम की विविध जिज्ञासायें हैं / पापकर्म का अनुबन्धन कैसे होता है ? और किस प्रकार के आचार-विचारवाला जीव मृत्यु के पश्चात् कहाँ पर (किस योनि में) उत्पन्न होता है ? यह उपपात-वर्णन प्रस्तुत आगम का हार्द है। और इसी आधार पर प्रस्तुत आगम का नामकरण हुआ है। यह वर्णन ज्ञानवर्धन के साथ दिलचस्प भी है। इसमें वैदिक और श्रमण परम्परा के अनेक परिव्राजकों, तापसों व श्रमणों का उल्लेख है। उनकी आचारसंहिता भी संक्षेप में दी गई है। उन परव्राजकों का संक्षेप में परिचय इस प्रकार है. 1. गौतम-ये अपने पास एक नन्हा सा बैल रखते थे, जिसके गले में कौड़ियों की माला होती, जो संकेत से अन्य व्यक्तियों के चरणस्पर्श करता। इस बैल को साथ रखकर यह साधु भिक्षा मांगा करते थे। अंगुत्तरनिकाय में भी इसप्रकार के साधुओं का उल्लेख है।' 2. गौव्रतिक-गोव्रत रखनेवाले / गाय के साथ ही ये परिभ्रमण करते / जब गाय गाँव से बाहर जाती तो ये भी उसके साथ जाते / गाय चारा चरती तो ये भी चरते और गाय के पानी पीने पर 1. अंगुत्तरनिकाय-३, पृ. 726.