________________ 39 8. श्रावक-धर्म-शास्त्रों को श्रवण करनेवाला ब्राह्मण / ' " ये आठों प्रकार के साधु दूध-दही, मक्खन-घृत, तेल, गुड़, मधु, मद्य और मांस का भक्षण नहीं करते थे। केवल सरसों का तेल उपयोग में लेते थे। गंगातट निवासी वानप्रस्थी तापस 9. होत्तिय-अग्निहोत्र करनेवाले तापस / 10. पोत्तिय-वस्त्रधारी / 11. कोत्तिय-भूमि पर सोनेवाले / 12. जण्णई-यज्ञ करनेवाले। 13. सड्ढई-श्रद्धाशील। . 14. थालई-सब सामान लेकर चलनेवाले / 15. हुंबउठ्ठ-कुण्डी लेकर चलनेवाले / 16. दंतुक्खलिय-दांतों से चबाकर खानेवाले / इसका उल्लेख रामायण में प्राप्त है। दीघनिकाय अट्ठका में भी इस सम्बन्ध में उल्लेख है। 17. उम्मज्जक-उन्मज्जन मात्र से स्नान करनेवाले / अर्थात् कानों तक पानी में जाकर स्नान करनेवाले / 18. सम्मज्जक-अनेकबार उन्मज्जन करके स्नान करनेवाले / 19. निमज्जक-स्नान करते समय कुछ क्षणों के लिए जल में डूबे रहनेवाले / 20. सम्पखाल-शरीर पर मिट्टी घिस कर स्नान करनेवाले / 21. दक्खिणकूलग-गंगा के दक्षिण तट पर रहनेवाले / 22. उत्तरकूलग-गंगा के उत्तर तट पर रहनेवाले / 23. संखधमक-शंख बजाकर भोजन करनेवले / वे शंख इसलिए बजाते थे कि अन्य व्यक्ति भोजन करते समय न आयें / 24. कूलधमक-किनारे पर खड़े होकर उच्च स्वर करते हुए भोजन करनेवाले / 25. मियलुद्धक-पशु-पक्षियों का शिकार कर भोजन करनेवाले / 26. हत्थीतावस-जो हाथी को मारकर बहुत समय तक उसका भक्षण करते थे। इन तपस्वियों का यह अभिमत था कि एक हाथी को एक वर्ष या छह महीने में मार कर हम केवल एक ही जीव 1. देखिए विस्तार के साथ ज्ञातासूत्र प्रस्तावना पृ. 37. -देवेन्द्रमुनि. 2. रामायण-३।६।३. 3. दीघनिकाय अट्ठकथा 1, पृ. 270 / 4. कर्णदध्ने जले स्थित्वा, तपः कुर्वन् प्रवर्तते / उन्मज्जकः स विज्ञेयस्तापसो लोकपूजितः // - अभिधानवाचस्पति