________________ 33 किन्तु साधना-पद्धतियों में तप के लक्ष्य और स्वरूप के सम्बन्ध में कुछ विचारभेद अवश्य रहा है। श्री भरतसिंह उपाध्याय का यह अभिमत है कि जो कुछभी शाश्वत है, जो कुछ भी उदात्त और महत्त्वपूर्ण है, वह सब तपस्या से ही संभूत है ।...प्रत्येक साधनाप्रणाली चाहे यह अध्यात्मिक हो, चाहे भौतिक हो, सभी तपस्या की भावना से अनुप्राणित है।' ___ तप के सम्बन्ध में अनुचिन्तन करते हुए सुप्रसिद्ध गांधीवादी विचारक काका कालेलकर ने लिखा है-"बुद्धकालीन भिक्षुओं की तपस्या के परिणामस्वरूप ही अशोक के साम्राज्य का और मौर्यकालीन संस्कृति का विस्तार हो पाया / शंकराचार्य की तपश्चर्या से हिन्दू धर्म का संस्करण हुआ। भ. महावीर की तपस्या से अहिंसा धर्म का प्रचार हुआ और चैतन्य महाप्रभु, जो मुखशुद्धि के हेतु एक हर्र भी मुँह में नहीं रखते थे, उनके तप से बंगाल में वैष्णव संस्कृति विकसित हुई। और महात्मा गांधी की तपस्या के फलस्वरूप ही भारत सर्वतंत्र स्वतन्त्र हुआ है। ___भगवान् महावीर स्वयं उग्र तपस्वी थे। अतः उनका शिष्यवर्ग तप से कैसे अछूता रह सकता था ? वह भी उग्र तपस्वी था / जैन तप-विधि की यह विशेषता रही है कि वह आत्म-परिशोधन-प्रधान है। देहदण्ड किया नहीं जाता, वह सहज होता है। जैसे-स्वर्ण की विशुद्धि के लिए उसमें रहे हुए विकृत तत्त्वों को तपाते हैं, पात्र को नहीं, वैसे ही आत्मशुद्धि के लिए आत्म-विकारों को तपाया जाता है न कि शरीर को / शरीर तो आत्मा का साधन है, इसलिए वह तप जाता है, तपाया नहीं जाता / तप में पीड़ा हो सकती है किन्तु पीड़ा की अनुभूति नहीं होनी चाहिए / पीड़ा शरीर से सम्बन्धित है और अनुभूति आत्मा से / अतः तप करता हुआ भी साधक दुःखी न होकर आह्लादित होता है। .. आधुनिक युग के सुप्रसिद्ध मनोविश्लेषक फ्रायड ने 'दमन' की कटु आलोचना की है। उसने दमन को सभ्य समाज का सबसे बड़ा अभिशाप कहा है। उसका अभिमत है कि सभ्य संसार में जितनी भी विकृतियाँ हैं, मानसिक और शारीरिक बीमारियाँ हैं, जितनी हत्यायें और आत्महत्यायें होती है, जितने लोग पागल और पाखण्डी बनते है, उसमें मुख्य कारण इच्छाओं का दमन है / इच्छाओं के दमन से अन्तर्द्वन्द्व पैदा होता है, जिससे मानव रुग्ण, विक्षिप्त और भ्रष्ट बन जाता है / इसलिए फ्रायड ने दमन का निषेध किया है। उसने उन्मुक्त भोग का उपाय बताया है। पर उसका सिद्धान्त भारतीय आचार में स्वीकृत नहीं है। वह तो उस दवा के समान है जो सामान्य रोग को मिटाकर भयंकर रोग पैदा करती है। यह सत्य है कि इच्छाओं का दमन हानिकारक है पर उससे कहीं अधिक हानिकारक और घातक है उन्मुक्त भोग ! उन्मुक्त भोग का परिणाम अमेरिका आदि में बढ़ती हुई विक्षिप्तता और आत्महत्याओं के रूप में देखा जा सकता भारतीय आचार पद्धतियों में इच्छाओं की मुक्ति के लिए दमन के स्थान पर विराग की आवश्यकता बताई है। विषयों के प्रति जितना राग होगा उतनी ही इच्छाएं प्रबल होंगी ! अन्तर्मानस में उद्दाम इच्छाएं पनप रही हों और फिर उनका दमन किया जाय तो हानि की संभावना है पर इच्छाएं निर्मूल समाप्त हो जायें 1. बौद्धदर्शन और अन्य भारतीय दर्शन प्र. सं. पृ. 71-72. 2. जीवन साहित्य-द्वितीय भाग पृ. 117-118