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________________ सूत्र -161-162] श्रमणोपासकादीनामुपपात: 189 व्यापारांशाः परप्राणपरितापनकराः वाचनान्तरे ‘सावज्जा अबोहिया कम्मत 'त्ति अत्र अबोधिकाः अविद्यमानबोधिका वेति / / 161 / / 162 - तं जहा-समणोवासगा भवंति, अभिगतजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा आसव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिकरण-बंधमोक्खकुसला असहेज्जा देवा-ऽसुर-णाग-जक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिसगरूल-गंधव्व-महोरगादिएहिं देवगणेहिं णिग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जा निग्गंथे पावयणे णिस्संकिता णिक्कंखिता णिव्वितिगिच्छा लद्धट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा अभिगतट्ठा विणिच्छितट्ठा अद्विमिंजपेमाणुरागरत्ता अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अटे अयं परमटे सेसे अणद्वे, ऊसितफलहा अवंगुतदुवारा चियत्तंतेपुरपरघरदारप्पवेसा चाउद्दसट्टमुदिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालित्ता समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असणपाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पादपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलहक-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरंति, विहरित्ता भत्तं पच्चक्खंति ते बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदंति, छेदित्ता आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति तहिं तेसिं गती० बावीसं सागरोवमाइं ठिई, आराहगा? सेसं तहेव // 162 // ____ [162] एवं सामान्येनोक्तानां मनुष्याणां विशेषनिर्देशार्थमाह-'तंजह'त्ति त एते इत्यर्थः / / 162 // ___ 163 से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा'अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया 'जाव कप्पेमाणा सुव्वता सुपडियाणंदा साहू सव्वातो पाणाइवायातो पडिविरया जाव सव्वातो परिग्गहातो पडिविरया, सव्वाओ कोहातो माणातो मायातो लोभाओ जाव 1. परप्राणपरितापनकराः - मु. नास्ति / / 2. अबोधिदा:-खं. // 3. द्र. सू. 89 / / 4. द्र. सू. 89 // 5. अणारंभा अपरिग्गहा - J. B. पु. प्रे. नास्ति / मु. v अस्ति / / 6. द्र. सू. 161 / / 7. द्र. सू. 117 / / 8. द्र. सू. 71 / /
SR No.004431
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size7 MB
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