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________________ सूत्र -94-96 ] परिव्राजकादीनामुपपातः 159 95 - से जे इमे गामागरनगर जाव सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा-कंदप्पिया, कुक्कुइया, मोहरिया, गीतरतिप्पिया, नच्चणसीला / ते णं एएणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयप्पडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे कंदप्पिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तहिं तेसिं गती तहिं तेसिं ठिती, सेसं तं चेव णवरं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं ठिती पण्णत्ता जीव आराहगा ? नो इणढे समटे // 95 // [95] 'पव्वइया समण' त्ति निर्ग्रन्था इत्यर्थः, 'कंदप्पिय' त्ति कान्दर्पिका:नानाविधहासकारिणः ‘कुक्कुइय' त्ति 'कुकुचेन कुत्सितावस्पन्देन चरन्तीति कौकुचिकाः, ये हि भ्रू-नयन-वदन-कर-चरणादिभिर्भाण्डा इव तथा चेष्टन्ते यथा स्वयमहसन्त एव परान् हासयन्तीति 'मोहरिय' त्ति मुखरा-नानाविधासम्बद्धाभिधायिनस्त एव मौखरिकाः 'गीयरइपिय' त्ति गीतेन या रती-रमणं क्रीडा सा प्रिया येषां गीतरतयो वा लोकाः प्रिया येषां ते तथा 'सामण्णपरियागं'ति श्रामण्यपर्यायं साधुत्वमित्यर्थः ‘पाउणंति 'त्ति प्रापयन्ति पूरयन्तीत्यर्थः 11 // 95 // 96 - से जे इमे गामागरनगर जाव सन्निवेसेसु परिव्वाया भवंति, तं जहासंखा, जोई, काविला, भिगुव्वा, हंसा, परमहंसा, बहुउदगाओ, कुलिव्वया, कण्हपरिव्वाया, तत्थ खलु इमे अट्ठमाहणपरिव्वाया भवंति, तं जहा'कंडू य करकंडू य, अम्मडे य परासरे / कण्हे दीवायणे चेव, देवगुत्ते य नारए // 1 // तत्थ णं इमे अट्ठखत्तियपरिव्वाया भवंति, तं जहा-सीलई मसिधरे नग्गई भग्गई तिय विदेहे राया रामे बले ति य // 96 // 1. द्र.सूत्र.८९ / / 2. कौकु० खं. // 3. कौत्कु० B // 4. पु.प्रे.! | कुडिव्वया - मुं. 5. कण्हे य - मु. / 6. 'थेरीगाथा' 116 द्रष्टव्यम् तथा महाभारते 1,114,35 द्रष्टव्यम् / / 7. सूत्रकृताङ्गे 3/4/2/3 पृ. 94-95 द्रष्टव्यम् / / 8. 'कण्हदीवायणजातकमध्ये पृ. 83-87 द्रष्टव्यम् / महाभारते 1/114/45 द्रष्टव्यम् // 9. पु.प्रे.L। ससिहारे (य) IV पाठा० मसिहारे - V / 10. विदेहे प.प्रे..। राया राया राया रामे - मु. || A-B द्र. सत्र. 90 / /
SR No.004431
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size7 MB
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