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________________ सूत्र -93-94] तापसादीनामुपपात: 157 'धर्मचिन्तका' धर्मशास्त्रपाठकाः सभासदा इत्यर्थः, अविरूद्धाः' वैनयिकाः उक्तं च ___अविरुद्धो विणयकरो देवाईणं पराए भत्तीए / जह वेसियायणसुओ एवं अन्नेऽवि नायव्वा // 1 // " विरुद्धा-अक्रियावादिनः केचिदात्माद्यनभ्युपगमेन 'बाह्यान्तरविरुद्धत्वात्, वृद्धाःतापसा वृद्धकाल एव दीक्षाभ्युगमात्, आदिदेवकालोत्पन्नत्वेन च सकललिङ्गिनामाद्यत्वात्, श्रावका-धर्मशास्त्रश्रवणाद् ब्राह्मणा: अथवा वृद्धश्रावका ब्राह्मणाः, एते प्रभृतिः-आदिर्येषां ते तथा, 'नवणीयं'ति म्रक्षणं 'सप्पिति घृतं 'फाणियं 'त्ति गुडं 'नण्णत्थ एक्काए सरिसवविगईए'त्ति न इति आहारनिषेधः अन्यत्र तां वर्जयित्वेत्यर्थः, एकस्याः सर्षपविकृतेः सर्षपतैलविकृतरित्यर्थः 9 // 93 / / 94 - से जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति तं जहा-होत्तिया, पोत्तिया, कोत्तिया, जन्नई, सड्ढई, थालई, हुंबउट्ठा, दंतुक्खलिया, उम्मज्जगा, सम्मज्जगा, निमज्जगा, संपक्खाला, दक्खिणकूलगा, उत्तरकूलगा, संखधमगा, कूलधमगा, मियलुद्धगा, हंत्थितावसा उदंडगा 'दिसापोखिणो वाकवासिणो वा चेलवासिणो, जलवासिणो, रुक्खमूलिया, अंबुभक्खिणो, "वायभक्खिणो, सेवालभक्खिणो, मूलाहारा, कंदाहारा, तयाहारा, पत्ताहारा, पुप्फाहारा, फलाहारा, बीयाहारा, परिसडियकंदमूलतयपत्तपुप्फफलाहारा, जलाभिसेयकढिर्णगाया, आतावणाहिं पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंदसोल्लियं कट्टसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा बहई वासाइं परियागं पाउणंति, 1. विशेषार्थं द्रष्टव्यम् अनुयोगद्वारे सूत्र 20 // 2. द्रष्टव्यम् आवश्यकनि. 494, आवश्यकचूर्णौ पृ. 298, भगवतीसूत्रे 3 / 1, अंगुत्तरनिकाये 3 पृ. 276 // A अविरुद्धो विनयकरो देवादीनां परया भक्त्या / यथा वैश्यायनसुतः एवमन्येऽपि // 3. वाद्यन्तर०खं.॥ 4. तुला- निशीथचूर्णि: भा. 2 पृ. 118, ज्ञाताधर्मकथा 15 / 1, अंगुतरनिकाय (हिंदीअनुवाद) भा. 2 पृ. 452, अनुयोगद्वारटीका सू. 20 // 5. द्रष्टव्यं भगवती सूत्रे 11/9/417 / / 6. द्र. रामायण 3-6-9, दीघनिकाय अट्ठकथा 1, पृ.२७०।। 7. उम्मज्जा समज्जा निम्मज्जा -पु.प्रे. // उम्मज्जका सम्मज्जका निमज्जका- J / द्र. अभिधानवाचस्पतिकोशः // 8. दक्खिणकूला उत्तरकूला संखंधमा कलंधमा मियलद्धा प.प्रे. // 9. द्र. सत्रकताङ्ग 2.6 / ललितविस्तर प.२४८, महावग्ग ६,१०,२२.प.२३५ // 10. द्र.आचाराङ्गचूर्णि: 5, पृ,१६९ // 11. द्र.भगवतीसूत्र. 110 / निरियावलियाओ 3, 37-45 // वसुदेवहिण्डी पृ.१७। दीघनिकाय सिगालोववादसूत्त / / 12. वक्कवा० इति भगवतिसूत्रे / 13. द्र.रामायण 3.11-12 / महाभारत 1.96-42 // 14. द्र.ललितविस्तर पृ. 248 // 15. द्र.दीघनिकाय 1, अम्बट्ठसुत्त पृ.८८ / उत्तराध्ययनटीका 10, पृ.१५४ अ // 16. ०गातभूया - पु. प्रे. L मु. //
SR No.004431
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size7 MB
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