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________________ स्वाभाविक ही है। पुनः षट्खण्डागम, तिलोयपण्णति, तत्त्वार्थसूत्र के पउमचरियं का अनुसरण देखा जाना आश्चर्यजनक नहीं है, किंतु इनके आधार पर पउमचरियं की परम्परा को निश्चित नहीं किया जा सकता है। पूर्ववर्ती ग्रंथ के आधार पर परवर्ती ग्रंथ की परम्परा का निर्धारण तो सम्भव है, किंतु परवर्ती ग्रंथों के आधार पर पूर्ववर्ती ग्रंथ की परम्परा निश्चय नहीं की जा सकती है। पुनः पउमचरियं में तीर्थंकर माता के 14 स्वप्न, तीर्थंकर, नामकर्मबंध के बीस कारण, चक्रवर्ती की रानियों की 64000 संख्या, भ. महावीर के द्वारा मेरुकम्पन, स्त्रीमुक्ति का स्पष्ट उल्लेख आदि अनेक ऐसे तथ्य हैं जो स्त्री मुक्ति निषेधक दिगम्बर परम्परा के विपक्ष में जाते हैं। विमलसूरि के सम्पूर्ण ग्रंथ में दिगम्बर शब्द का अनुल्लेख और सियम्बर शब्द का एकाधिक बार उल्लेख होने से उसे किसी भी स्थिति में दिगम्बर परम्परा का ग्रंथ सिद्ध नहीं किया जा सकता है। क्या पउमचरियं श्वेताम्बर परम्परा का ग्रंथ है ? आएं अब इसी प्रश्न पर श्वेताम्बर विद्वानों के मंतव्य पर भी विचार करें और देखें कि क्या वह श्वेताम्बर परम्परा का ग्रंथ हो सकता है ? पउमचरियं के श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने के निम्नलिखित प्रमाण प्रस्तुत किए जाते हैं - (1) विमलसूरि ने लिखा है कि 'जिन' के मुख से निर्गत अर्थरूप वचनों को गणधरों ने धारण करके उन्हें ग्रंथरूप दिया- इस तथ्य को मुनि कल्याणविजय जी ने श्वेताम्बर परम्परा सम्मत बताया है, क्योंकि श्वेताम्बर परम्परा की नियुक्ति में इसका उल्लेख मिलता है।२६ (2) पउमचरियं (2/26) में भ. महावीर के द्वारा अंगूठे से मेरूपर्वत को कम्पित करने की घटना का भी उल्लेख हुआ है, यह अवधारणा भी श्वेताम्बर परम्परा में बहुत प्रचलित है। (3) पउमचरियं (2/36-37) में यह भी उल्लेख है कि भ. महावीर केवलज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् भव्य जीवों को उपदेश देते हुए विपुलाचल पर्वत पर आए, जबकि दिगम्बर परम्परा के अनुसार भ. महावीर ने 66 दिनों तक मौन रखकर विपुलाचल पर्वत पर अपना प्रथम उपदेश दिया। डॉ. हीरालाल जैन एवं डॉ. उपाध्ये ने भी इस कथन को श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में माना है।२७
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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