________________ परम्परा के निर्धारण में बहुत अधिक सहायक इसीलिए भी नहीं होता है कि प्राचीनकाल में, श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों में ग्रंथ प्रारम्भ करने की अनेक शैलिया प्रचलित रही हैं। दिगम्बर परम्परा में विशेष रूप से यापनीयों में जम्बूस्वामी और प्रभवस्वामी से भी कथा परम्परा के चलने का उल्लेख तो स्वयं पद्मचरित में ही मिलता है। वही क्रम श्वेताम्बर ग्रंथ वसुदेवहिण्डी में भी है। श्वेताम्बर परम्परा में भी कुछ ऐसे भी आगम ग्रंथ हैं, जिनमें किसी श्राविका के पूछने पर श्रावक ने कहा- इससे ग्रंथ का प्रारम्भ किया गया है। 'देविन्दत्थव' नामक प्रकीर्णक में श्रावक-श्राविका के संवाद के रूप में ही उस ग्रंथ का समस्त विवरण प्रस्तुत किया गया है। आचारांग में शिष्य की जिज्ञासा समाधान हेतु गुरु के कथन से ही ग्रंथ का प्रारम्भ हुआ है, उसमें जम्बू और सुधर्मा से संवाद का कोई संकेत भी नहीं है। इससे यही फलित होता है कि प्राचीनकाल में ग्रंथ का प्रारम्भ करने की कोई एक निश्चित पद्धति नहीं थी। श्वेताम्बर परम्परा में मान्य आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दी, अनुयोगद्वार, दशाश्रुतस्कंध, कल्प आदि अनेक ग्रंथों में भी जम्बूस्वामी और सुधर्मास्वामी के संवादवाली पद्धति नहीं पाई जाती है। पद्धतियों की एकरूपता और विशेष सम्प्रदाय द्वारा विशेष पद्धति का अनुसरण- यह एक परवर्ती घटना है, जबकि पउमचरियं अपेक्षाकृत एक प्राचीन रचना है। (2) दिगम्बरं विद्वानों ने पउमचरियं में महावीर के विवाह के अनुल्लेख (पउमचरियं 2/28-29 एवं 3/57-58) के आधार पर उसे अपनी परम्परा के निकट बताने का प्रयास किया है, किंतु हमें स्मरण रखना चाहिए कि प्रथम तो पउमचरियं में भ. महावीर का जीवन-प्रसंग अतिसंक्षिप्त रूप से वर्णित है, अतः महावीर के विवाह का उल्लेख न होने से उसे दिगम्बर परम्परा का ग्रंथ नहीं माना जा सकता है। स्वयं श्वेताम्बर परम्परा के कई प्राचीन ग्रंथ ऐसे हैं, जिनमें महावीर के विवाह का उल्लेख नहीं है। पं.दलसुखभाई मालवणिया ने स्थानांग एवं समवायांग के टिप्पण में लिखा है कि भगवतीसूत्र के विवरण में महावीर के विवाह का उल्लेख नहीं मिलता है। विवाह का अनुल्लेख एक अभावात्मक प्रमाण है, जो अकेला निर्णायक नहीं माना जा सकता, जब तक कि अन्य प्रमाणों से यह सिद्ध नहीं हो जाए कि पउमचरियं दिगम्बर या यापनीय ग्रंथ है। (3) पुनः पउमचरियं में महावीर के गर्भ-परिवर्तन का उल्लेख नहीं मिलता है, किंतु मेरी दृष्टि से इसका कारण भी उसमें भ. महावीर की कथा को अत्यंत संक्षेप में प्रस्तुत करना है। पुनः यहां भी किसी अभावात्मक तथ्य के आधार पर ही कोई निष्कर्ष निकालने (67)