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________________ विमलसूरि और उनके पउमचरियं का सम्प्रदाय - यहां क्या विमलसूरि का पउमचरियं यापनीय है? इस प्रश्न का उत्तर भी अपेक्षित है। विमलसूरि और उनके ग्रंथ पउमचरियं के सम्प्रदाय सम्बंधी प्रश्न को लेकर विद्वानों में मतभेद पाया जाता है। जहां श्वेताम्बर' और विदेशी विद्वान पउमचरियं में उपलब्ध अंतः साक्ष्यों के आधार पर उसे श्वेताम्बर परम्परा का बताते हैं, वहीं पउमचरियं के श्वेताम्बर परम्परा के विरोध में जानेवाले कुछ तथ्यों को उभार कर कुछ दिगम्बर विद्वान् उसे दिगम्बर या यापनीय सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं।' वास्तविकता यह है कि विमलसूरि के पउमचरियं में सम्प्रदायगत मान्यताओं की दृष्टि से यद्यपि कुछ तथ्य दिगम्बर परम्परा के पक्ष में जाते हैं, किंतु अधिकांश तथ्य श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में ही जाते हैं, जहां हमें सर्वप्रथम इन तथ्यों की समीक्षा कर लेनी होगी। प्रो. वी.एम.कुलकर्णी ने जिन तथ्यों का संकेत प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी से प्रकाशित 'पउमचरियं' की भूमिका में किया है, उन्हीं के आधार पर यहां हम यह चर्चा प्रस्तुत करने जा रहे हैं। पउमचरियं की दिगम्बर परम्परा के निकटता सम्बंधी कुछ तर्क और उनके उत्तर (1) कुछ दिगम्बर विद्वानों का कथन है कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय में सामान्यतया किसी ग्रंथ का प्रारम्भ- 'जम्बू स्वामी के पूछने पर सुधर्मा स्वामी ने कहा',- इस प्रकार से होता है, आगमों के साथ-साथ कथा ग्रंथों में यह पद्धति मिलती है, इसका उदाहरण संघदासगणि की वसुदेवहिण्डी है, किंतु वसुदेवहिण्डी में जम्बूस्वामी ने प्रभवस्वामी को कहा- ऐसा भी उल्लेख है', जबकि दिगम्बर परम्परा के कथा ग्रंथों में सामान्यतया श्रेणिक के पूछने पर गौतम गणधर ने कहा- ऐसी पद्धति उपलब्ध होती है, जहां तक पउमचरियं का प्रश्न है, उसमें निश्चित ही श्रेणिक के पूछने पर गौतम ने रामकथा कही ऐसी ही पद्धति उपलब्ध होती है, किंतु मेरी दृष्टि में इस तथ्य को पउमचरियं के दिगम्बर परम्परा से सम्बद्ध होने का आधार नहीं माना जा सकता, क्योंकि पउमचरियं में स्त्री मुक्ति आदि ऐसे अनेक ठोस तथ्य हैं, जो श्वेताम्बर परम्परा के पक्ष में ही जाते हैं। यह सम्भव है कि संघभेद के पूर्व उत्तर भारत की निग्रंथ परम्परा में दोनों ही प्रकार की पद्धतियां समान रूप से प्रचलित रही हों और बाद में एक पद्धति का अनुसरण श्वेताम्बर आचार्यों ने किया हो और दूसरी का दिगम्बर या यापनीय आचार्यों ने किया है। यह तथ्य विमलसूरि की
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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