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________________ संस्कृत भाषा में रविषेण पद्मपुराण में दिगम्बर अमितगति धर्मपरीक्षा में आ.हेमचंद्र योगशास्त्र की स्वोपज्ञवृत्ति में तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में, आ. घनेश्वर शजयमहात्म्य में, देवविजयगणि 'रामचरित' (अप्रकाशित) और मेघविजयगणि लघुत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (अप्रकाशित) में प्रायः विमलसूरि का अनुसरण करते हैं। अपभ्रंश में स्वयम्भू ‘पउमचरिउ' में भी विमलसूरि का ही अनुसरण करते हैं। यहां यह ज्ञातव्य है कि रविषेण का पद्मपुराण' (संस्कृत) और स्वयम्भूका ‘पउमचरिउ' (अपभ्रंश) चाहे भाषा की अपेक्षा भिन्नता रखते हो, किंतु ये दोनों ही विमलसूरि के पउमचरियं का संस्कृत या अपभ्रंश रूपांतरण ही लगते हैं। श्री गुणभद्र के उत्तरपुराण की रामकथा का अनुसरण प्रायः अल्प ही हुआ है। मात्र कृष्ण के संस्कृत के पुण्यचंद्रोदयपुराण में तथा अपभ्रंश के पुष्पदंत के महापुराण में इसका अनुसरण देखा जाता है। पउमचरियं की भाषा एवं छंद योजना सामान्यतया ‘पउमचरियं' प्राकृत भाषा में रचित काव्य ग्रंथ है, फिर भी इसकी प्राकृत मागधी, अर्द्धमागधी, शौरसेनी, पैशाची और महाराष्ट्री प्राकृतों में कौन सी प्राकृत है, यह एक विचारणीय प्रश्न है। यह तो स्पष्ट है कि इसका वर्तमान संस्करण मागधी, अर्धमागधी और शौरसेनी प्राकृतो की अपेक्षा महाराष्ट्रीयन प्राकृत से अधिक नैकट्य रखता है, फिर भी इसे परवर्ती महाराष्ट्री प्राकृत से अलग रखना होगा। इस सम्बंध में प्रो.वी.एम.कुलकर्णी ने पउमचरियं की अपनी अंग्रेजी प्रस्तावना में अतिविस्तार से एवं प्रमाणों सहित चर्चा की है। उसका सार मात्र इतना ही है कि पउमचरियं की भाषा परवर्ती महाराष्ट्री प्राकृत न होकर प्राचीन महाराष्ट्री प्राकृत है। वह सामान्य महाराष्ट्री प्राकृत का अनुसरण न करके जैन महाराष्ट्री प्राकृत का अनुसरण करती है, अतः उसका नैकट्य आगमिक अर्द्धमागधि से भी देखा जाता है। वे लिखते हैं कि "Paumachariya, which represents an archaic form of jain maharastri" पउमचरियं की भाषा की प्राचीनता इससे भी स्पष्ट हो जाती है कि उसमें प्रायः गाथा (आर्या) छंद की प्रमुखता है, जो एक प्राचीन और सरलतम छंद योजना है। गाथा या आर्या छंद की प्रमुखता होते हुए भी पउमचरियं में स्कंधक, इंद्रवज्रा, उपेन्दवज्रा, उपजाति आदि अनेक छंदों के प्रयोग भी मिलते हैं, फिर भी ये गाथा/आर्या छंद की अपेक्षा अति अल्प मात्रा में प्रयुक्त हुए हैं। मेरी दृष्टि में इनकी भाषा और छंद योजना का नैकट्य आगमिक व्याख्या 64
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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