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________________ 11 योगशास्त्र स्वोपज्ञ वृत्ति आ.हेमचंद्र (श्वे.) संस्कृत प्रायः ईस्वी सन् १२वीं शती 12 शत्रुजयमहात्म्य आ.धनेश्वरसूरि (श्वे.)संस्कृतप्रायः ईस्वी सन् १४वीं शती 13 पुण्यचंद्रोदय पुराण श्रीकृष्णदास (दि.) संस्कृत ई.सन् 1528 14 रामचरित . देवविजयगणि (श्वे.) संस्कृत ई.सन् 1596 15 लघुत्रिषष्टि शलाका मेघविजय (श्वे) संस्कृत ई.सन् १७वीं पुरुष-चरित शती इनमें एकाध अपवाद को छोड़कर शेष सभी ग्रंथ प्रायः प्रकाशित है। इनके अतिरिक्त भी रामकथा सम्बंधी अनेक हस्तलिखितं प्रतियों का उल्लेख जिनरत्नकोश में मिलता है, जिनकी संख्या 30 से अधिक है। इनमें हनुमानचरित, सीताचरित आदि भी सम्मिलित हैं। विस्तारभय ये यहां इन सबकी चर्चा अपेक्षित नहीं है। आधुनिक युग में भी हिन्दी में अनेक जैनाचार्यों ने रामकथा सम्बंधी ग्रंथों की रचना की है। इनमें स्थानकवासी जैन संत शुक्लचंद्रजी म. की ‘शुक्लजैनरामायण' आ. भद्रगुप्तसूरीश्वरजी का जैन रामायण' तथा आचार्य तुलसी की ‘अग्नि-परीक्षा' अति प्रसिद्ध है। जैनों में रामकथा की दो प्रमुख धाराएं वैसे तो आवान्तर कथानकों की अपेक्षा जैन परम्परा में भी रामकथा के विविध रूप मिलते हैं, फिर भी जैनों में रामकथा की दो धाराएं लगभग प्रायः ईसा की ९वीं शताब्दी से देखी जाती है- 1. ग्रंथकार विमलसूरि की रामकथा धारा और 2. गुणभद्र की रामकथा धारा। सम्प्रदायों की अपेक्षा-अचेल यापनीय एवं श्वेताम्बर ग्रंथकार विमलसूरि की रामकथा की धारा का अनुसरण करते रहे, जबकि दिगम्बर धारा में भी मात्र कुछ आचार्यों ने ही गुणभद्र की धारा का अनुसरण किया। श्वेताम्बर परम्परा में संघदासगणि एवं यापनीयों में रविषेण, स्वयम्भू एवं हरिषेण भी मुख्यतः विमलसूरि के ‘पउमचरियं' का ही अनुसरण करते हैं, फिर भी संघदासगणि के कथानकों में कहीं-कहीं विमलसूरि से मतभेद भी देखा जाता है। रामकथा सम्बंधी प्राकृत ग्रंथों में आ.शीलांक चउपन्नमहापुरिसचरियं में आ. हरिभद्र धूर्ताव्याख्यान में और आ. भद्रेश्वर कहावली में, (63)
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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