SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डॉ. (श्रीमती) कमल जैन ने इस आकर ग्रंथ का आलोड़न करके उसमें सामाजिक और सांस्कृतिक सूचनाएं संगृहीत की हैं और उन्हें एक व्यवस्थित रूप दिया है। जीवन के उत्तरार्ध में अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए उन्होंने अपने को विद्या की उपासना में संलग्न करके रखा है, यह निश्चित ही दूसरों के लिए प्रेरणादायक और अनुकरणीय है। यदि विद्वत्वर्ग ऐसे अछूते ग्रंथों को अपने अध्ययन का विषय बनाकर उनके निचोड़ को जनसाधारण के सम्मुख प्रस्तुत करेगा तो निश्चय ही प्राकृत विद्या के क्षेत्र में उनके अवदान को सदैव स्मरण किया जा सकेगा। अंत में मैं डॉ. (श्रीमती) कमल जैन के स्वस्थ और मंगलमय जीवन की कामना करते हुए यही अपेक्षा करता हूं कि वे जैन विद्या के क्षेत्र में निरंतर जुड़ी रहें और अपनी ग्रंथ रचना के माध्यम से भारती का भण्डार समृद्ध करती रहें। पउमचरियं की भूमिका (ई.सन् की २-३री शती) रामकथा की व्यापकता - राम और कृष्ण भारतीय संस्कृति के प्राण-पुरुष रहे हैं। उनके जीवन आदर्शों एवं उपदेशों ने भारतीय संस्कृति को पर्याप्त रूप से प्रभावित किया है। भारत एवं भारत के पूर्वी निकटवर्ती देशों में आज भी राम-कथा के मंचन की परम्परा जीवित है। हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म परम्परा में राम-कथा सम्बंधी प्रचुर उल्लेख पाए जाते हैं। राम-कथा सम्बंधी ग्रंथों में वाल्मिकी रामायण प्राचीनतम ग्रंथ है। यह ग्रंथ हिन्दू परम्परा में प्रचलित राम-कथा का आधार ग्रंथ है। इसके अतिरिक्त संस्कृत में रचित पद्मपुराण और हिन्दी में रचित रामचरितमानस भी राम-कथा सम्बंधी प्रधान ग्रंथ है, जिन्होंने हिन्दू जन-जीवन को प्रभावित किया है। जैन परम्परा में रामकथा सम्बंधी ग्रंथों में प्राकृत भाषा में रचित आ. विमलसूरि का ‘पउमचरिय' एक प्राचीनतम प्रमुख ग्रंथ है। लेखकीय प्रशस्ति के अनुसार यह ई.सन् की प्रथम शती के रचना है। वाल्मिकी की रामायण के पश्चात् रामकथा सम्बंधी ग्रंथों में यही प्राचीनतम ग्रंथ हैं। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी में रचित रामकथा सम्बंधी (61)
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy