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________________ उसका चित्रण किया गया है, किंतु इसके साथ ही साथ जहां आचार्य ने एक ओर शूद्रों पर होने वाले अत्याचारों की चर्चा की, वहीं उनके द्वारा वेदाध्ययन करने तथा जिन धर्म के पालन का चित्रण भी प्रस्तुत किया और इस प्रकार शूद्रों को अपने गुण और साधना के आधार पर समकक्षता प्रदान की। इसी प्रसंग में विद्याधरों और वन्य जातियों का भी चित्रण किया गया है। वसुदेवहिण्डी से यह प्रतिफलित होता है कि उस युग तक व्यवस्था, कठोर नहीं थी। अन्तर्जातीय विवाह प्रचलित थे। वसुदेवहिण्डी की पत्नियां, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि सभी वर्गों से थीं। मध्यम खण्ड में तो मातंग (चांडाल) चिलात कन्याओं से भी विवाह करने के उल्लेख हैं। प्रस्तुत कृति में वर्णव्यवस्था के साथ-साथ आश्रम व्यवस्था का भी चित्रण मिलता है और यह भी ज्ञात होता है कि उस युग में ऋषिगण भी विवाह करते थे, किंतु इनके अतिरिक्त श्रमणों की भी एक परम्परा थी, जो पंचमहाव्रत का पालन करती थी। लेखिका ने इसी अध्याय में समाज में प्रचलित विभिन्न संस्कारों की भी चर्चा की है। इससे यह ज्ञात होता है कि उस युग में ब्राह्मण परम्परा में मान्य विभिन्न संस्कार जैन परम्परा में भी गृहीत हो गए थे। इसी अध्याय में नारी की सामाजिक स्थिति पर विस्तार से चर्चा की गई है। यद्यपि इस प्रसंग में नारी के उदात्त और अनुदात्त दोनों ही पक्षों का चित्रण वसुदेवहिण्डी में हुआ है। तृतीय अध्याय का, द्वितीय विभाग उस काल में प्रचलित धार्मिक मान्यताओं का चित्रण करता है। वसुदेवहिण्डी के धार्मिक परम्पराओं के चित्रण से यह स्पष्ट लगता है कि उस युग में जैन परम्परा में तंत्र का प्रभाव आना प्रारम्भ हो गया था। वसुदेवहिण्डी में तंत्र और मंत्र विद्याओं का प्रवर्तन ऋषभदेव से माना गया है। इससे यह फलित होता है कि जैन परम्परा में भी विद्याओं की प्राप्ति के लिए अनुष्ठान किए जाने लगे थे। वसुदेवहिण्डी में विभिन्न विद्याओं और उनके सिद्ध करने के उपायों की चर्चा भी मिलती है। इससे यह प्रतिफलित होता है कि जैन धर्म जैसे निवृत्तिपरक धर्म भी तांत्रिक साधना के आगोश में समा गए थे। . वसुदेवहिण्डी के चतुर्थ अध्याय में भौगोलिक, आर्थिक एवं राजनैतिक स्थितियों के उल्लेख हैं। इसमें विभिन्न जनपदों के उल्लेख के साथ-साथ वहां के पर्वतों और नदियों के भी उल्लेख हैं। इन उल्लेखों से यह ज्ञात होता है कि उस समय भारतीय व्यापारी चीन, स्वर्णदीप (सुमात्रा), यवद्वीप (जावा), सिंहल द्वीप (लंका), बरबर, बेबीलोनियां और
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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