________________ रूप में गंगा अवतरण की कथा को ले सकते हैं। राजा सगर के 60,000 पुत्रों के द्वारा अष्टापद पर बने जैन मंदिर की रक्षा के लिए उसके चारों ओर खाई खोदना, पानी का नागलोक में चला जाना, क्रोधित नाग का सगर पुत्रों को भस्म कर देना, भगीरथ की पूजा-अर्चना करके गंगा का मार्ग समुद्रगामी बना देना आदि कथा प्रसंग किंचित रूप से परिवर्तन करके समाहित कर लिए गए हैं। इसी प्रकार अनेक ऐसे कथानक हैं जो अभिज्ञानशाकुन्तलम्, महाभारत और अन्य पौराणिक आख्यानों से समानता रखते हैं। . वस्तुतः, वसुदेवहिण्डी प्राकृत जैन कथा साहित्य का उपजीव्य है। वसुदेवहिण्डी में आए चारुदत्त और गणिका का कथानक मृच्छकटिक के चारुदत्त और वसंतसेना के कथानकों से साम्य रखता है। यह कथानक हरिभद्र के समराइच्चकहा, जिनसेन के हरिवंशपुराण, उद्योतनसूरि की कुवलयमाला में भी आया है। वक्कलचीरि और कोक्कास बढ़ई की कथा आवश्यकचूर्णि में उपलब्ध होती है। हरिसेन के बृहत्कथा की अनेक कथाएं और रूपक वसुदेवहिण्डी से लिए गए हैं। इससे प्रस्तुत ग्रंथ का जैन परम्परा में क्या स्थान है, यह स्पष्ट हो जाता है। इसमें वैराग्य का उपदेश देने के लिए मधुबिंदु का दृष्टांत, गर्भवास के दुःख के प्रसंग में ललितांग का दृष्टांत, सांसारिक भोगों की दुःखमयता के प्रसंग में कौवे और हाथी का दृष्टांत, मिथ्यावादियों के प्रसंग में भैंसे का दृष्टांत आदि ऐसे दृष्टांत हैं, जो संघदासगणि की वैराग्यवादी दृष्टि को प्रस्तुत करते हैं। जनसाधारण को बोध देने के लिए आचार्यों ने अनेक लौकिक आख्यानों को अपनी रचना में स्थान दिया है। वस्तुतः, प्रस्तुत कृति में पौराणिक कथाओं, लौकिक कथाओं को अवान्तर कथाओं के रूप में समाहित करके एक व्यापक आधार प्रदान किया गया है। कथा में श्रृंगार का पुट होते हुए भी उसका अवसान वैराग्य में है। आचार्य ने गणिका जैसे चरित्रों को भी कुलीन नारियों की तरह सम्मानजनक बना दिया है। गणिका कुबेरसेना साधु-साध्वियों की सेवा में तत्पर रहती है तो गणिका कामपताका श्राविका के व्रत ग्रहण कर जैन धर्म की उपासना करती है। इस प्रकार वसुदेवहिण्डी के अनेक कथानक समाज में उच्च आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं। प्रस्तुत कृति के द्वितीय अध्याय में ग्रंथ का साहित्यिक मूल्यांकन भी किया गया है और उसमें आए हुए शुभाषितों को एक ही स्थान पर संगृहीत कर दिया गया है। प्रस्तुत कृति के तृतीय अध्याय में वसुदेवहिण्डी में वर्णित सामाजिक एवं धार्मिक स्थितियों का चित्रण किया गया है। इसमें सर्वप्रथम चारों वर्गों की जो व्यवस्था समाज में प्रचलित थी, (58)