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________________ कुल, जाति आदि का विशिष्ट परिचय देना सम्भव नहीं हुआ है। अभी भी यह एक विवादास्पद प्रश्न बना हुआ है कि प्रथम खण्ड के रचनाकार संघदासगणि क्या व्यवहारभाष्य के रचनाकार संघदासगणि ही हैं या अन्य कोई दूसरे संघदासगणि हैं, क्योंकि इसके आधार पर ही ग्रंथ का काल निर्णय सुनिश्चित होना सम्भव है। इतना तो निश्चित है कि ग्रंथ ईसा की छठी शताब्दी से अस्तित्व में आ गया था। ___ अपनी इस कृति के दूसरे अध्याय में लेखिका ने इस ग्रंथ का साहित्यिक दृष्टि से मूल्यांकन किया है और बताने का प्रयास किया है कि इस ग्रंथ पर अन्य ग्रंथों का और अन्य ग्रंथों का इस ग्रंथ पर किस प्रकार प्रभाव पड़ा है। सर्वप्रथम तो हम यह देखते हैं कि वसुदेवहिण्डी में यद्यपि राम, कृष्ण, प्रद्युम्न तथा महाभारत के कथा प्रसंग समाहित हैं, किंतु सीता को रावण की पुत्री के रूप में प्रस्तुत करने की कथा वसुदेवहिण्डी के लेखक की अपनी विशिष्ट अवधारणा है। यह कहना तो कठिन है कि उन्होंने इस अवधारणा को कहां से गृहीत किया था, किंतु यह अवधारणा विमलसूरि के पउमचरियं से भिन्न है और आगे दिगम्बर परम्परा के महापुराण में इसका निर्वहन किया गया है। जबकि विमलसूरि, दिगम्बर आचार्य रविसेन आदि यापनीय स्वयंभू ने दूसरी ही परम्परा को ग्रहण किया है। जैन परम्परा में राम कथा के जो दो रूप प्रचलित हैं, उनमें एक का आधार विमलसूरि का पउमचरियं तथा दूसरे का आधार वसुदेवहिण्डी की रामकथा ही है। इस प्रकार हम देखते हैं वसुदेवहिण्डी में पूर्व परम्परा से अनेक कथानकों को लेकर उन्हें जैन परम्परा का पुट देकर आंशिक रूप से नवीन रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत कृति में लेखिका ने द्वितीय अध्याय में ऐसे अनेक कथानकों का तुलनात्मक अध्ययन करके यह बताने का प्रयास किया है कि हिन्दू धर्म में प्रचलित अनेक कथानकों को ग्रहण करके उन्हें वसुदेवहिण्डी के कथानकों में मोड़ने का प्रयत्न किया गया है। उदाहरण के रूप में जैसे रामायण में सीता मृग शावक के लिए हठ करती है और उसी के कारण हरण हो जाती है, उसी प्रकार वसुदेवहिण्डी में भी नीलयशा मयूर शावक को देखकर उसे लेने का हठ करती है। वसुदेव मयूर शावक को लेने जाता है और इसी बीच नीलयशा का हरण हो जाता है। इसी प्रकार ज्योर्तिवन में चित्रित मृग को देखकर रानी सुतारा का उसके प्रति आकृष्ट होना, उसे लेने के लिए आग्रह करना, राजा द्वारा उसे लेने के लिए मग का पीछा करना, मायावी मग का उड़ जाना और रानी का अपहरण हो जाना, सीता हरण की घटना से काफी साम्य रखते हैं। अनेक पौराणिक कथाओं को भी वसुदेवहिण्डी में अपने ढंग से जैन परम्परा का पुट देकर प्रस्तुत किया गया है। उदाहरण के
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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