________________ उसमें चंद्रगुप्त और भद्रबाहु की तथा सम्प्रति और सुहस्ति की समकालिकता वीर निर्वाण को विक्रम संवत 410 वर्ष पूर्व मानने पर ही अधिक बैठती है। यदि वीर निर्वाण विक्रम संवत् के 410 वर्ष पूर्व हुआ है तो यह मानना होगा कि संघभेद 609-410 अर्थात् विक्रम संवत् 199 में हुआ। यदि इसमें भी हम कौडिण्य और कोट्टवीर का काल 60 वर्ष और जोड़े तो यह संधभेद लगभग विक्रम संवत् 259 अर्थात् विक्रम की तीसरी शताब्दी उत्तरार्द्ध में हुआ होगा। इस संघभेद के फलस्वरूप श्वेताम्बर और यापनीय परम्परा का स्पष्ट विकास तो इसके भी लगभग सौ वर्ष पश्चात् हुआ होगा। क्योंकि पांचवीं शती के पूर्व इन नामों का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता है। अतः उमास्वाति विक्रम की चौथी शती या उसके भी पूर्व हुए हैं। तत्त्वार्थभाष्य की प्रशस्ति तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता के काल का निर्णय करने का आज एकमात्र महत्त्वपूर्ण साधन है। उस प्रशस्ति के अनुसार तत्त्वार्थ के कर्ता उच्चै गर शाखा में हुए। उच्चैर्नागर शाखा का उच्चनागरी शाखा के रूप में कल्पसूत्र में उल्लेख है। उसमें यह भी उल्लेख है कि यह शाखाआर्य शांतिश्रेणिक से प्रारम्भ हुई। कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार शांतिश्रेणिक आर्यवज्र के गुरु सिंहगिरि के गुरुभ्राता थे। श्वेताम्बर पट्टावलियों में आर्यवज्र का स्वर्गवास काल वीर निर्वाण सं. 584 माना जाता है। अतः आर्यशांति श्रेणिक का जीवन काल वीर निर्वाण 470 से 550 के बीच मानना होगा। फ लतः आर्यशांतिश्रेणिक के उच्चनागरी की उत्पत्ति विक्रम की प्रथम शताब्दी के उत्तरार्ध और द्वितीय शताब्दी के पूर्वार्ध में किसी समय हुई। इसकी संगति मथुरा के अभिलेखों से * भी होती है। उच्चैर्नागर शाखा का प्रथम अभिलेख शक सं.५ अर्थात् विक्रम संवत 140 का है, अतः उमास्वाति का काल विक्रम की द्वितीय शताब्दी पश्चात् ही सिद्ध होगा। उमास्वाति के तत्त्वार्थभाष्य में उन्हें उच्चैर्नागरा शाखा का बताया गया है। इस शाखा के नौ अभिलेख हमें मथुरा से उपलब्ध होते हैं। जिन पर कनिष्क, हुविष्क और वासुदेव का उल्लेख भी है। यदि इन पर अंकित सम्वत् शक संवत हो तो यह काल प्राक. संवत् 5 से 87 के बीच आता है; इतिहासकारों के अनुसार कनिष्क, हुविष्क और वासुदेव ई. सन् 78 से 176 के बीच हुए हैं। विक्रम संवत् की दृष्टि से उनका यह काल शक संवत् 135 से 233 के बीच आता है अर्थात् विक्रम संवत् की द्वितीय शताब्दी का उत्तरार्द्ध और तृतीय शताब्दी का पूर्वार्द्ध। अभिलेखों के काल की संगति आर्य शांतिश्रेणिक और उनसे उत्पन्न उच्चनागरी शाखा के काल से ठीक बैठती है। उमास्वाति इसके पश्चात् ही कभी