________________ परम्परा में कुन्दकुन्द के ग्रंथों गुणठाण के नाम से इस सिद्धांत का उल्लेख मिलता है। ये सभी ग्रंथ लगभग पांचवीं शती के आसपास के हैं। इसलिए इतना तो निश्चित है कि तत्त्वार्थ की रचना चौथी-पांचवीं शताब्दी के पूर्व की है। यह सही है कि ईसा दूसरी शताब्दी से वस्त्र-पात्र के प्रश्न पर विवाद प्रारम्भ हो गया, फिर भी यह निश्चित है कि पांचवीं शताब्दी के पूर्व श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय जैसे सम्प्रदाय अस्तित्व में नहीं आ पाए थे। निग्रंथसंघ (दिगम्बर), श्वेतपट्टमहाश्रमणसंघ और यापनीय संघ का सर्वप्रथम उल्लेख हल्सी के पांचवीं शती के अभिलेखों में ही मिलता है। - मूलसंघ का उल्लेख उससे कुछ पहले ई.सन् 370 एवं 421 का है। तत्त्वार्थ के मूलपाठों की कहीं दिगम्बर परम्परा से, कहीं श्वेताम्बर परम्परा से और कहीं यापनीय परम्परा से संगति होना और कहीं विसंगति होना, यही सूचित करता है कि वह संघ भेद के पूर्व की रचना है। मुझे जो संकेत सूत्र मिले हैं, उससे ऐसा लगता है कि तत्त्वार्थ उस काल की रचना है जब श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय स्पष्ट रूप से विभाजित होकर अस्तित्व में नहीं आए थे। श्री कापड़ियाजी ने तत्त्वार्थ को प्रथम शताब्दी के पश्चात् चौथी शताब्दी के पूर्व की रचना माना है। तत्त्वार्थसूत्र भाष्य में ऐसे भी अनेक तथ्य है जो न तो सर्वथा वर्तमान श्वेताम्बर परम्परा से और न ही दिगम्बर परम्परा से मेल खाते हैं। 'हिस्ट्री ऑफ मिडिवल स्कूल ऑफ इण्डियन लाजिक' में तत्त्वार्थसूत्र की तिथि 1-85 ए.डी. स्वीकार की गई है। प्रो.विंटरनित्ज मानते हैं कि उमास्वाति उस युग में हुए जब उत्तर भारत में श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय एक दूसरे से पूर्णतः पृथक् नहीं हुए थे। उनका ग्रंथ तत्त्वार्थ सूत्र सपष्टतः सम्प्रदाय भेद के पूर्व का है। सम्प्रदाय भेद के सम्बंध में सर्वप्रथम हमें जो साहित्यिक सूचना उपलब्ध होती है, वह आवश्यक मूलभाष्य की है, जो आवश्यकनियुक्ति और विशेषावश्यक के मध्य निर्मित हुआ था। उसमें वीर निर्वाण के 609 वर्ष पश्चात् ही बोटिकों की उत्पत्ति का अर्थात् उत्तर भारत में अचेल और सचेल परम्पराओं के विभाजन का उल्लेख है। साथ ही उसमें यह भी उल्लेख है कि मुनि के सचेल या अचेल होने का विवाद तो आर्यकृष्ण और आर्य शिव के बीच वीर नि.सं. 609 में हुआ था, किंतु परम्परा भेद उनके शिष्ट कौडिण्य और कोट्टवीर से हुआ। इसका तात्पर्य यह है कि स्पष्ट रूप से परम्परा भेद वीर नि.सं. 609 के पश्चात् हुआ है। सामान्यतया वीर निर्माण विक्रम संवत् से 470 वर्ष पूर्व माना जाता है, किंतु इसमें 60 वर्ष का विवाद है, जिसकी चर्चा आचार्य हेमचंद्र से लेकर समकालीन अनेक विद्वान भी कर रहे हैं। इतिहासकारों ने चंद्रगुप्त, अशोक और सम्प्रति आदि का जो काल निर्धारित किया है, (162)