________________ हुए हैं। तत्त्वार्थभाष्य में उमास्वाति ने अपने प्रगुरु घोषनन्दी श्रमण और गुरु शिवश्री का उल्लेख किया है। मुझे मथुरा के अभिलेखों में खोज करने पर स्थानिक कुल के गणी उग्गहिणी के शिष्य वाचक घोषक का उल्लेख उपलब्ध हुआ है। स्थानिककुल भी उसी कोटिकगण का कुल है, जिसकी एक शाखा उच्चानागरी है। कुछ अभिलेखों में स्थानिक कुल के साथ वज्री शाखा का भी उल्लेख हुआ है। यद्यपि उच्चनागरी और वज्री दोनों ही शाखाएं कोटिकगण की हैं। मथुरा के एक अन्य अभिलेख में 'निवतना सीवद' ऐसा उल्लेख भी मिलता है। निवर्तना सम्भवतः समाधि स्थल की सूचक है, यद्यपि इससे ये आर्यघोषक और आर्य शिव निश्चित रूप से ही उमास्वाति के गुरु एवं प्रगुरु हैं, इस निष्कर्ष पर पहुंचना कठिन है, फिर भी सम्भावना तो व्यक्त की ही जा सकती है। दूसरे कुल भेद या शाखा भेद के आधार पर उन्हें प्रगुरु या गुरु नहीं मानना भी समीचीन नहीं है। ऐसे अनेक उदाहरण है जहां गुरु या प्रगुरु में कुल या शाखा भेद सम्भव है। आर्य कृष्ण और आर्य शिव जिनके बीच वस्त्र-पात्र सम्बंधी विवाद वीर नि.सं.६०९ में हुआ था। उन दोनों के उल्लेख हमें मथुरा के कुषाणकालीन अभिलेखों में उपलब्ध होते हैं। यद्यपि आर्य शिव के सम्बंध में जो अभिलेख उपलब्ध होते हैं, उसके खण्डित होने से संवत् का निर्देश तो स्पष्ट नहीं है, किंतु निवर्तनासीवद' ऐसा उल्लेख है जो इस तथ्य का सूचक है कि उनके समाधि स्थल पर कोई निर्माण कार्य किया गया था। आर्य कृष्ण का उल्लेख करने वाला अन्य लेख स्पष्ट है और उसमें शक संवत् 95 निर्दिष्ट है। इस अभिलेख में कोटीयगण, स्थानीयकुल और वैरी शाखा का उल्लेख भी है। इस आधार पर आर्य शिव और आर्य कृष्ण का काल वि.सं. 20 के लगभग आता है। वस्त्रपात्र विवाद का काल वीर नि.स.६०९-४१० = वि.सं. 199 मानने पर इसकी संगति उपर्युक्त अभिलेख से हो जाती है, क्योंकि आर्य कृष्ण की यह प्रतिमा उनके स्वर्गवास के 30-40 वर्ष बाद ही कभी बनी होगी। उससे यह बात भी पुष्ट होती है कि आर्य शिव आर्य कृष्ण के ज्येष्ठ थे। कल्पसूत्र स्थविरावली में भी उन्हें ज्येष्ठ कहा गया है। सम्भावना यह भी हो सकती है ये दोनो गुरुभाई हों और उनमें आर्य शिव ज्येष्ठ और आर्य कृष्ण कनिष्ठ हों या आर्य शिव आर्य कृष्ण के गुरु हों। यद्यपि विशेषावश्यकभाष्य में साम्प्रदायिक अभिनिवेश के कारण यह क्रम उलट दिया गया है। इन आर्य शिव को उमास्वाति का प्रगुरु मानने पर उनका काल तीसरी शताब्दी का पूर्वार्ध होगा, किंतु तीसरी शती के उत्तरार्ध से चौथी शताब्दी पूर्वार्ध तक के जो भी 16