________________ १००वें द्वार में पदविभाग सामाचारी का उल्लेख है। ज्ञातव्य है कि छेदसूत्रों में वर्णित सामाचारी पदविभागसामाचारी कहलाती है। . १०१वें द्वार में चक्रवाल सामाचारी का विवेचन किया गया है। चक्रवाल सामाचारी इच्छाकार, मिथ्याकार आदि दस प्रकार की है। यह सामाचारी उत्तराध्ययन और भगवती सूत्र में भी वर्णित है। प्रस्तुत कृति में इस सामाचारी का विस्तृत विवेचन है। १०२वें द्वार में उपशमश्रेणी और क्षपकश्रेणी का विवेचन किया गया है। १०३वें द्वार में गीतार्थ विहार और आश्रित विहार का निर्देश है। इसी संदर्भ में यात्रा करते समय किस प्रकार की सावधानी रखना चाहिए, इसका भी विवेचन किया गया है। ज्ञातव्य है कि आगम के साथ-साथ देश-काल और परिस्थिति का आकलन करने में समर्थ साधक गीतार्थ कहलाता है। . १०४वें द्वार में अप्रतिबद्ध विहार का निर्देश है। इसमें यह बताया गया है कि मुनि चातुर्मास काल में चार मास तक, अन्य काल में एक मास तक एक स्थान पर रह सकता है, उसके पश्चात् सामान्य परिस्थिति में विहार करना चाहिए। १०५वें द्वार में जातकल्प और अजातकल्प का निर्देश है। श्रुतसम्पन्न गीतार्थ मुनि के साथ यात्रा करना जातकल्प है और इससे भिन्न अजातकल्प है। इसी क्रम में ऋतुबद्ध विहार को सम्मत विहार कहा गया है और भिन्न विहार को असम्मत विहार कहा गया है। १०६वें द्वार में मलमूत्र आदि के प्रतिस्थापन अर्थात् विसर्जन की विधि का विवेचन है। इसी प्रसंग में विभिन्न दिशाओं का भी विचार किया गया है। ___१०७वे द्वार में दीक्षा के अयोग्य अट्ठारह प्रकार के पुरुषों का उल्लेख किया गया है। इसी क्रम में १०८वें द्वार में दीक्षा के अयोग्य बीस प्रकार की स्त्रियों का भी उल्लेख किया गया है। - १०९वें द्वार में नपुंसकों को और ११०वें द्वार में विकलांगों को दीक्षा के अयोग्य बताया गया है। नपुंसकों की चर्चा करते हुए टीका में उनके सोलह प्रकारों का उल्लेख हुआ है और सोलह प्रकारों में से दस प्रकार को दीक्षा के अयोग्य और छः प्रकार को दीक्षा के योग्य माना गया है। . १११वें द्वार में साधु को कितने मूल्य का वस्त्र कल्प्य (ग्राह्य) है, उसका विवेचन किया गया है। इसी प्रसंग में विभिन्न प्रदेशों और नगरों में मुद्रा विनिमय का पारस्परिक 147