________________ प्रकार के चमड़े का और ८४वें द्वार में पांच प्रकार के वस्त्रों का विवेचन किया गया है। ८५वें द्वार में पांच प्रकार के अवग्रहों (ठहरने के स्थानों) का और ८६वें द्वार में बावीस परिषहों का विवेचन किया गया है। ८७वें द्वार में सात प्रकार की मण्डलियों का उल्लेख है। ८८वें द्वार में जम्बूस्वामी के समय में जिन दस बातों का विच्छेद हुआ, उनका उल्लेख है। . ८९वें द्वार में क्षपकश्रेणी का और ९०वें द्वार में उपशमश्रेणी का विवेचन है। ९१वें द्वार में स्थण्डिल भूमि (मल-मूत्र विसर्जन करने का स्थान) कैसी होनी चाहिए- इसका विवेचन उपलब्ध होता है। ___९२वें द्वार में चौदह पूर्वो और उनके विषय तथा पदों की संख्या आदि का निर्देश किया गया है। ९३वें द्वार में निग्रंथों के पुलाक, बकुश, कुशील, निग्रंथ और स्नातक- ऐसे . पांच प्रकारों की चर्चा है। ९४वें द्वार में निग्रंथ, शाक्य, तापस, गैरूक और आजीवक ऐसे पांच प्रकार के श्रमणों की चर्चा है। . ९५वें द्वार में संयोजन, प्रमाण, अंगार, धूम और कारण ऐसे ग्रासैषणा के पांच दोषों का विवेचन किया गया है। मुनि को भोजन करते समय स्वाद के लिए भोज्य पदार्थों का सम्मिश्रण करना, परिमाण से अधिक आहार करना, भोज्य पदार्थों में राग रखना, प्रतिकूल भोज्य पदार्थों की निंदा करना और अकारण आहार करना निषिद्ध है। ९६वें द्वार में पिण्ड-पाणैषणा के सात प्रकारों का उल्लेख हुआ है। ९७वें द्वार में भिक्षाचर्या अष्टक अर्थात् भिक्षाचर्या के आठ प्रकारों का विवेचन किया गया है। 983 द्वार में दस प्रायश्चितों का विवेचन किया गया है। दस प्रायश्चित निम्न हैं (1) आलोचना, (2) प्रतिक्रमण, (3) आलोचना सहित प्रतिक्रमण, (4) विवेक, (5) व्युत्सर्ग, (6) तप, (7) छेद, (8) मूल, (9) अनवस्थित (उपस्थापन) और (10) पारांचिक। ९९वें द्वार में ओघ सामाचारी अर्थात् सामान्य सामाचारी का विवेचन है, यह विवेचन औघनियुक्ति में प्रतिपादित सामाचारी पर आधारित है। .