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________________ ___चैत्यवंदन के हेतु जिन-भवन में प्रवेश करते सर्वप्रथम पुष्प-माला, ताम्बूल आदि सचित्त द्रव्यों का परिहार करे, आभूषण आदि अचित्त द्रव्यों का परिहार नहीं करे और एक अधोवस्त्र और एक उत्तरीय धारण करें। ज्ञातव्य है कि कुछ आचार्यों के अनुसार यहां अहंकार सूचक अचितद्रव्य जैसे छत्र, चामर, मुकुट आदि के भी त्याग का निर्देश है। प्रवचनसारोद्धार की टीका इस सम्बंध में विस्तृत विवेचना करती है। चक्षु के द्वारा जिन प्रतिमा दिखाई देने पर अंजलि प्रग्रह करें और एकाग्रचित्त होकर पूर्वोक्त दसत्रिकों का अनुसरण करता हुआ जिन प्रतिमा का वंदन करें। ये दस त्रिक निम्नानुसार हैं 1. सर्वप्रथम निषेधिका त्रिक में (अ) गृही जीवन सम्बंधी सावध व्यापार का प्रतिषेध, (ब) जिनभवन सम्बंधी सावद्य व्यापार का त्याग और (स) पूजा विधान सम्बंधी सावध व्यापार का त्याग। कुछ अन्य आचार्यों के अनुसार ये तीन निषेधिकाएं इस प्रकार हैं- (1) जिन मंदिर के मुख्य द्वार पर आकर गृहस्थ सम्बंधी कार्यों का निषेध करें, (2) फिर जिन-मंदिर के मध्य भाग (रंग-मण्डप) में प्रवेश करते समय सावध (हिंसक) वचन-व्यापार का निषेध करें और (3) गर्भगृह में प्रवेश करने पर सभी सावध (हिंसक) कार्यों के मानसिक चिंतन का भी निषेध करें- यह निषेधिकात्रिक हैं। 2. जिन प्रतिमा की तीन प्रदक्षिणा करना प्रदक्षिणात्रिक है। . 3. जिन प्रतिमा को तीन बार प्रणाम करना प्रणामत्रिक है। 4. पूजा त्रिक के अंतर्गत तीन प्रकार की पूजा का उल्लेख किया गया है - (1) पुष्प-पूजा, (2) अक्षत-पूजा, (3) स्तुति-पूजा , 5. जिन की छद्मस्थ, कैवल्य और सिद्ध-इन तीन अवस्थाओं का चिंतन करना त्रि-अवस्था भावना है। 6. तीन दिशाओं में न देखकर मात्र जिन-बिम्ब के सम्मुख दृष्टि रखना ‘त्रिदिशानिरीक्षणविरति' है। 7. जिस भूमि पर स्थित रहकर जिन प्रतिमा को वंदन करना है, उस स्थल का गृहस्थ द्वारा वस्त्र अंचल से और मुनि द्वारा रजोहरण से तीन बार प्रमार्जन करना प्रमार्जनात्रिक हैं। 8. शब्द, अर्थ एवं आलम्बन (प्रतिमा) ये वर्ण-त्रिक है। 9. मुद्रात्रिक के अंतर्गत तीन प्रकार की मुद्राएं बताई गई हैं - (138)
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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