________________ अलंकार, तर्क, साहित्य और सिद्धांत का ज्ञाता कहा गया है। ज्ञातव्य है कि ये यशोदेवसूरि ही प्रस्तुत कृति के संशोधक भी थे। इस समग्र चर्चा के आधार पर प्रस्तुत कृति के कर्ता नेमिचंद्रसूरि (द्वितीय) की जो गुरु परम्परा निर्धारित होती है, उसे निम्न सारिणी के द्वारा स्पष्टतया समझा जा सकता है बृहद्गच्छीय देवसूरि आदित्यदेवसूरि आनन्देवसूरि (पट्टधर) नेमिचंद्रसूरि (प्रथम) (पट्टधर) प्रद्योतनसूरि पट्टधर जिनचंद्रसूरि (पट्टधर) श्रीचंद्रसूरि (शिष्य) आम्रदेवसूरि (शिष्य) / / हरिभद्रसूरि विजयसेनसूरि नेमिचंद्रसूरि यशोदेवसूरि गुणाकर पार्श्वदेव / / प्रस्तुत कृति का रचनाकाल यद्यपि प्रवचनसारोद्धार की प्रशस्ति में उसके रचनाकाल का स्पष्ट निर्देश नहीं है, किंतु उसके कर्ता नेमिचंद्रसूरि (द्वितीय) का सत्ताकाल विक्रम की १२वीं शताब्दि के उत्तरार्ध से लेकर १३वीं शताब्दि के पूर्वार्ध तक सुनिश्चित है। उन्होंने अपने अनन्तनाहचरियं में उसके रचनाकाल का भी स्पष्ट निर्देश किया है। ग्रंथ के रचनाकाल के सम्बंध में ग्रंथ की अंतिम प्रशस्ति में उन्होंने ‘रसचंदसूरसंखे वरिसे विक्कमनिवाओ वढते' ऐसा स्पष्ट स्पष्ट उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट होता है कि इस ग्रंथ की रचना वि.सं. 1216 में हुई थी। इस कृति में कुमारपाल के राज्यकाल का भी स्पष्ट निर्देश है। इससे भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि उन्होंने जब वि.सं. 1216 में अनन्तनाहचरियं की रचना की थी, तब गुजरात में कुमारपाल शासन कर रहा था। अतः उनका सत्ताकाल विक्रम की १२वीं शताब्दि के (132