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________________ उल्लेख नहीं किया है, किंतु उन्होंने अपना और अपनी गुरु परम्परा का संक्षिप्त, किंतु स्पष्ट निर्देश किया है। कर्ता प्रशस्ति में वे लिखते हैं धर्म रूपी पृथ्वी का उद्धार करने में महावराह के समान जिनचंद्रसूरि के शिष्य आम्रदेवसूरि हुए। उनके शिष्य नेमिचंद्रसूरि, जो विजयसेन गणधर से कनिष्ठ और यशोदेवसूरि से ज्येष्ठ थे, ने सिद्धांत रूपी रत्नाकर से रत्नों का चयन करके प्रवचनसारोद्धार की रचना की।' इस प्रकार प्रवचनसारोद्धार की इस कर्ता प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु परम्परा में केवल अपने प्रगुरु जिनचंद्रसूरि और गुरु आम्रदेवसूरि के ही नामों का निर्देश किया है, उनके गच्छ आदि का विस्तृत विवरण नहीं दिया है, किंतु अपने द्वारा ही रचित अनन्तनाथचरित्र की कर्ता प्रशस्ति में अपनी गच्छ परम्परा और गुरु परम्परा का अधिक विस्तृत विवरण दिया है। फिर भी उपरोक्त दोनों प्रशस्तियों के सांसारिक जीवन के सम्बंध में कोई भी विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। अनन्तनाथचरित से इतना विशेष ज्ञात होता है कि वे श्वेताम्बर परम्परा के बृहद्गच्छ में दीक्षित हुए थे। उसमें इस बृहद्गच्छ का प्रारम्भ देवसूरि से बताया गया है। इन देवसूरि के शिष्य आदित्यदेवसूरि हुए। आदित्यदेवसूरि के शिष्य आनंददेवसूरि और आनंददेवसूरि के शिष्य नेमिचंद्रसूरि (प्रथम) हुए। उसमें इन्हें सिद्धांत के रहस्यों का ज्ञाता भी कहा गया है। इन्होंने लघुवीरचरित, उत्तराध्ययनवृत्ति, आख्यानक-मणिकोष एवं रत्नचूडचरित आदि ग्रंथों की रचना की थी। प्रशस्ति में इन नेमिचंद्रसूरि का जिस प्रकार से गुणगान किया गया है, उससे यही सिद्ध होता है प्रवचनसारोद्धार के कर्ता ये नेमिचंद्रसूरि (प्रथम) नहीं है, क्योंकि ग्रंथकार प्रशस्ति में स्वयं अपनी प्रशंसा इस रूप में नहीं कर सकता है। इसी प्रशस्ति में आगे आनन्ददेवसूरि के दूसरे दो शिष्यों प्रद्योतनसूरि और जिनचंद्रसूरि का उल्लेख भी हुआ है और इन जिनचंद्रसूरि के आम्रदेवसूरि और श्रीचंद्रसूरि ऐसे दो शिष्य हुए। ये आम्रदेवसूरि आख्यानक-मणिकोष की वृत्ति के रचयिता हैं। प्रशस्ति के अनुसार इन्हीं आम्रदेवसूरि के शिष्यों में हरिभद्रसूरि, विजयसेनसूरि, यशोदेवसूरि और नेमिचंद्रसूरि (द्वितीय) आदि हुए। यही नेमिचंद्रसूरि (द्वितीय) इस प्रवचनसारोद्धार के कर्ता हैं। __ अपने अनन्तनाथचरित की ग्रंथ प्रशस्ति में इन नेमिचंद्रसूरि ने अपने को मन्दमति कहा है, इससे भी यही सिद्ध होता है कि ये नेमिचंद्रसूरि (द्वितीय) ही उस अनन्तनाथचरित एवं प्रवचनसारोद्धार नामक प्रस्तुत कृति के कर्ता हैं। नेमिचंद्रसूरि ने उस प्रशस्ति में अपने जिन अन्य गुरु भ्राताओं का भी निर्देश किया है, उनमें यशोदेवसूरि को लक्षण, छन्द, (131)
SR No.004428
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Jain Granth Bhumikao ke Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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