________________ * आवश्यिकी सामाचारी - गुरु की आज्ञा लेकर ही मल-मूत्र निवृत्ति, भिक्षा एवं ज्ञानार्जन आदि के लिए बाहर जाना चाहिए, क्योंकि साधु के लिए ज्ञानार्जन, ध्यानसाधना तथा भिक्षाटन आदि कार्य आवश्यक हैं। इन आवश्यक कार्यों के प्रति गुरु की आज्ञापूर्वक उपाश्रय से बाहर जाना आवश्यिकी सामाचारी है। इसमें उपाश्रय से बाहर जाते समय ‘आवस्सहि-आवस्सहि' बोलना चाहिए। निषीधिका सामाचारी - देव या गुरु के स्थान पर प्रवेश करते समय अथवा आवश्यक कार्यों को सम्पन्न करके लौटने पर 'निसीहि' शब्द का उच्चारण करना ही नैषेधिकी है। इसका तात्पर्य है अशुभ कार्य करने या अनावश्यक रूप से बाहर जाने का निषेध है। गुरुदेव के स्थान का उपभोग सावधानी से करना चाहिए, जिससे उनकी किसी प्रकार की आशातना न हो। जो साधु सावद्ययोग से रहित होते हैं, उन्हीं की निषीधिका सामाचारी सफल होती है। आपृच्छना सामाचारी - ज्ञानादि कार्य गुरु से पूछकर करना ही आपृच्छना सामाचारी है। गुरु से पूछकर किया गया कार्य सिद्ध होता है। इससे पापकर्मों का प्रणाश तथा पुण्यकर्मों का बंध होता है। आगामी भव में शुभ गति तथा सद्गुरु का लाभ होता है। इसलिए साधु को कोई भी कार्य गुरु की अनुमति लेकर ही करना चाहिए। प्रतिपृच्छना सामाचारी - गुरु से पूछकर किए गए कार्य को सम्पन्न होने में कोई अंतराल आ गया हो तो पुनः पूछकर कार्य करना प्रतिपृच्छना कहलाता है। पुनः पूछने पर गुरु दूसरा कार्य पहले करने को भी कह सकते हैं या यह कह सकते हैं कि कार्य हो चुका है, अब इसे करना आवश्यक नहीं है। इसलिए साधु को कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व गुरु से पुनः पूछना ही प्रतिपृच्छना सामाचारी है। छन्दना सामाचारी - भिक्षा में लाए गए आहार को गुरु की आज्ञा से बाल, रोगी आदि को देने के लिए उनसे पूछना कि इसकी तुम्हें आवश्यकता है या नहीं', छन्दना सामाचारी है। विशिष्ट तप करने वाला, पारणा करने वाला या असहिष्णुता के कारण समूह (मण्डली) से अलग भोजन करने वाले साधु को छन्दना सामाचारी का अनुसरण करना चाहिए। निमंत्रण सामाचारी - गुरु से पूछकर आहार आदि के लिए दूसरों को निमंत्रण देना निमंत्रण सामाचारी है। उपसम्पदा सामाचारी - ज्ञानादि के लिए गुरु से अलग अन्य आचार्य के पास