________________ तप, शरीर-शोभा, उचित गीतवाद्य, स्तुति-स्तोत्र, प्रेक्षणक आदि इसके छः द्वार हैं, जिनका यथाशक्ति पालन करना चाहिए। जिनयात्रा सम्बंधी इन छः क्रियाओं के लिए यह आवश्यक है कि इस हेतु सर्वप्रथम राजाज्ञा-प्राप्त की जाए, बिना राजा की आज्ञा के उसके आदेश में जिन की शोभायात्रा निकालना उचित नहीं है। राजा के उसके भूभाग में इनके करने हेतु अनुमति प्राप्त करना आगम सम्मत है। इससे उस देश में विचरण करने वाले साधुओं को निम्नांकित लाभ होते हैं ... (1) तीसरे महाव्रत का निरतिचार पालन होता है और जिनाज्ञा की आराधना होने से कर्मों की निर्जरा होती है, (2) इन कार्यों में शत्र के उपद्रव आदि का भय नहीं रहता है, (3) राजा के द्वारा साधु का सम्मान होने से लोक में भी उस साधु का सम्मान होता है, अतः साधु को राजा के पास जाकर जैन शासन से अविरुद्ध उसके विनय, दाक्षिण्य और सज्जनता आदि गुणों की प्रशंसा करनी चाहिए तथा कहना चाहिए- हे श्रेष्ठ पुरुष! मनुष्य के रूप में तो सभी मनुष्य समान होते हैं, फिर भी आपने विशिष्ट पुण्यकर्म से मनुष्यों के राजा बनने का सौभाग्य प्राप्त किया है। मनुष्य और देवलोक सम्बंधी सभी सम्प्रदाओं की उपलब्धि का कारण धर्म है और धर्म ही संसार-रूपी समुद्र को पार कराने वाला जहाज है। अतः आप धर्मकाय में सहयोगी बनें। साधु के इस प्रकार के वचन से प्रभावित हो राजा उस महोत्सव के प्रसंग में या सर्वदा के लिए जीवहिंसादि का निवारण करता है। इस प्रकार जिनेंद्रदेव की यात्रा के अवसर पर राजाज्ञा से अथवा धनादि देकर भी हिंसादि कार्य रुकवाने का प्रयत्न करना चाहिए। संघ को राजा से मिलकर हिंसा बंद करवाने वाले आचार्य या श्रावकों का अंतःकरण से सम्मान करना चाहिए। उन महापुरुषों के सम्मान से गुणों की अनुमोदना होती है और हिंसा निवारणरूप विशेष भाव होने से कर्मक्षय होते हैं। जैनधर्म में तीर्थंकरों के पांच कल्याणक दिवस माने गए हैं- (1) तीर्थंकरों का गर्भ में आगमन, (2) उनका जन्म, (3) अभिनिष्क्रमण, (4) केवलज्ञान और (5) मोक्षप्राप्ति। इन कल्याणकों के दिनों में जिन की शोभायात्रा निकालना श्रेयस्कर माना जाता है। इन दिनों में जिन-यात्रा करने से निम्न लाभ होते हैं . (1) तीर्थंकर का लोक में सम्मान होता है, (2) देव, इंद्र आदि द्वारा निर्वाहित परम्परा का अनुमोदन होता है, (4) जिनमहोत्सव गम्भीर सहेतुक हैं- ऐसी लोक में प्रसिद्धि होती है, (5) जिनशासन की प्रभावना होती है और (6) जिनयात्रा में भाग लेने से विशुद्ध मार्गानुसारी गुणों के पालन सम्बंधी अध्यवसाय उत्पन्न होते हैं। विशुद्ध मार्गानुसारी (99