________________ पुराणों में जड़ पदार्थों का उल्लेख है। यही नहीं, परमाणु को जैनदर्शन के समान उसकी लघुतम इकाई भी स्वीकृत किया है परन्तु दोनों के परमाणु में अन्तर है। जैनदर्शन में सूक्ष्म परमाणुओं का एक व्यवहार परमाणु होता है तथा ऐसे अनेक व्यवहार परमाणु का एक त्रसरेणु बताया गया है।३६ जबकि पौराणिक अवधारणा के अनुसार परमाणु जड़ की अल्पतम इकाई है, जिससे आठ गुना बड़ा त्रसरेणु बताया है। इससे यह जैनोक्त परमाणु से स्थूल प्रतीत होता है तथा पंच भूतों का पुराणों में स्कन्ध रूप में वर्णन, प्रकृति एवं प्रकृति का विकासक्रम भी पौगलिक है। जीवद्रव्य जीवद्रव्य ___ समस्त द्रव्यों में एक मात्र जीवद्रव्य ही सजीव द्रव्य है। जीव की स्थिति लोक में ही बताई गई है। जीवद्रव्य का गुण उपयोग (चैतन्य) बताया है। जीवद्रव्य पुद्गल के मिश्रण से अशुद्ध होने के कारण बद्ध रहता है। उसके बंधन से मुक्ति की प्रक्रिया का विशद् विश्लेषण जैनधर्म एवं पुराण में किया गया है। दोनों में जीवद्रव्य की नित्यता एवं चैतन्यगुण बताते हुए उसे देहादि समस्त विनाशशील भौतिक पदार्थों से भिन्न कहा गया है अर्थात् जीव का अस्तित्व अनादिकाल से है और अनन्तकाल तक रहेगा। जीवों के बहुत से प्रकारों का एवं चौरासी लक्ष जीवों की योनियों का भी चित्रण किया गया है। - निष्कर्षतः द्रव्य की व्याख्या एवं भेदों का वर्णन जिस प्रकार से व्यवस्थित जैनदर्शन में उपलब्ध होता है, उतना तो नहीं किन्तु फिर भी पुराणों में सत् के व्यक्ताव्यक्त रूप के वर्णन से तथा उसकी नित्यता से जैनदर्शन वर्णित सत् तुलनीय है। द्रव्य के जड़ तथा चेतन (अजीव तथा जीव) का विवेचन पृथक्-पृथक् विस्तृत रूप से दृष्टिगोचर होता है। जीव के चैतन्यगुण एवं अजीव के जड़त्व का प्रतिपादन ही नहीं, बल्कि उनके परिवर्तन, परिणमन आदि भी उल्लिखित हैं। 000 . . 63 / पुराणों में जैन धर्म