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________________ 30 काष्टा एक कला, 30 कला = एक घटी, 30 कला = एक घटी, 2 षटी (60 कला) एक मुहूर्त 30 मुहूर्त (60 घटी) = एक अहोरात्र दिन-रात) 15 अहोरात्र एक पक्ष 2 पक्ष एक माह 6 महीना एक दक्षिणायन = एक दिव्य रात 6 महीना . = एक उत्तरायण = एक दिव्य दिन 2 अयन = एक वर्ष 30 वर्ष .. ___= 1 दिव्य मास 360 वर्ष ___ = 1 दिव्य वर्ष 3030 वर्ष .. = 1 सप्तर्षि वर्ष 9.90 वर्ष = . 1 ध्रुव वर्ष 96000 वर्ष = 1 दिव्य वर्ष सहन 1728000 वर्ष = 1 सत्ययुग 1296000 वर्ष = 1 त्रेतायुग 864000 वर्ष = 1 द्वापरयुग 432000 वर्ष = * 1 कलियुग 4310100 वर्ष = 1 चतुर्युगी 306720000 वर्ष ... = 1 मन्वन्तर (71 चतुर्युगी) 429,40,0000 वर्ष = 14 मन्वन्तर 4320000000 वर्ष = 1 ब्राह्म दिन (सहस्र चतुर्युगी) 4320000000 वर्ष = 1 ब्राह्म रात्रि * काल के इस विभाजन के अतिरिक्त जैन कालमीमांसा में वर्णित अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी काल का भी उल्लेख पुराणों में है। जिनका सम्बन्ध वहाँ भी हास एवं विकास की दृष्टि से ही है। - इस प्रकार काल की जगत् के परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका को पुराण तथा जैनधर्म में स्वीकार किया है। . 61./ पुराणों में जैन धर्म
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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