________________ इन्हीं कथ्यों को दृष्टि सम्मुख रखते हुए देवीभागवत में आख्यात है कि वेद मंत्रों के सभी वर्गों के बोधगम्य कराने हेतु पुराणों का निर्माण हुआ है। उपर्युक्त उदाहरणों के द्वारा पुराणों की वेदमूलकता स्पष्ट होती है। पुराणों का विभाजन प्रमुख पुराणों की संख्या 18 है। इन पुराणों का विभाजन अनेक प्रकार से किया गया है। उनको संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है। पद्म पुराणानुसार तीन प्रकार के पुराण है१. सात्विक इसके अन्तर्गत वैष्णव नारदीय, भागवत, गारूड, पाद्म, वाराह-ये 6 पुराण है। 2. राजस-ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, भविष्य, वामन एवं ब्रह्म ये 6 राजस .. पुराण कहलाते हैं। 3. तामस-मत्स्य, कूर्म, लिंग, शिव, स्कन्द तथा अग्नि इन 6 को तामस पुराण . कहा गया है। स्कन्दपुराणानुसार प्रतिपादित देवासुरी विभाजन इस प्रकार हैशैव-शिव विषयक पुराण-शिव, भविष्य, मार्कण्डेय, लिंग, वाराह, स्कन्द, मत्स्य, कूर्म, वामन तथा ब्रह्माण्ड-ये 10 शैवपुराण हैं। 2. वैष्णव-विष्णु विषयक विष्णु, भागवत, नारदीय, गरूड ये 4 वैष्णवपुराण हैं। 3. ब्रह्म-ब्रह्म विषयक अग्निपुराण है। . 4. साकिन सूर्य विषयक ब्रह्मवैवर्तपुराण है। मत्स्यपुराण में पद्मपुराणवत् साहिवसदि तीन विभाग किये गये हैं।६२ पुराण के पंचलक्षण के आधार पर दो भाग किये जा सकते हैं१. प्राचीन वायु, ब्रह्माण्ड, मत्स्य और विष्णु तथा 2. प्राचीनेतर-इनसे भिन्न प्राचीनेतर हैं। आधुनिक विद्वानों ने पुराणों के छः वर्ग निर्धारित किये हैं१. प्रथम वर्ग में साहित्य का विशाल कोष है। इस वर्ग में गरूड, अग्नि तथा नारदीय पुराण आते हैं, जिनमें प्राचीन विद्याओं का संक्षेप बड़े अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया गया है। 2. द्वितीय वर्ग में मुख्यतः तीर्थों तथा व्रतों का वर्णन है। इस विभाग में पद्म, स्कन्द तथा भविष्य की गणना की गई है। 3. तृतीय वर्ग ब्रह्म, भागवत तथा ब्रह्मवैवर्त पुराणों का है, जिनका मूल भाग वही है जो उनका केन्द्रस्थ भाग है। इनके दो बार हुए. संस्करणों में आगे-पीछे बहुत कुछ जोड़ा गया है। पुराण परिचय / 2