________________ * पुराणों के प्रणेता ___ व्यास नाम से जुड़े अनेक ग्रन्थ हमारे सामने उपस्थित होते हैं जिनके रचना काल, रचयिता के विषय में समुचित समाधान के विषय में अनेक विद्वानों का मन्तव्य इस प्रकार है-वैदिक काल से लेकर पौराणिक काल तक एक ही व्यक्ति के होने की सम्भावना न होने से इसे एक व्यक्ति का नाम नहीं माना जा सकता है। अतः अनुधित्सु कई विदेशी विद्वानों ने कह दिया कि व्यास अथवा वेदव्यास किसी का अभिधान न होकर एक प्रतीकात्मक, भावनात्मक, कल्पनात्मक या छाधारी नाम है। संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान् मेक्डोनल का भी लगभग यही मत है। महामहोपाध्याय पण्डित गिरधर शर्मा चतुर्वेदीजी ने भी स्पष्टीकरण किया है—व्यास या वेदव्यास किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं है, अपितु यह एक पदवी है अथवा अधिकार का नाम है, जब जो ऋषि मुनि वेद संहिता का विभाजन या पुराणों का सम्पादन कर ले, वही उस समय व्यास या वेदव्यास कहा जाता है। पुराणों के रचयिता व्यास के सन्दर्भ में शंकराचार्य ने वेदान्तसूत्र के भाष्य में कहा है-पुराकालीन वेदाचार्य अपान्तरनाम वेदव्यास ऋषि ही कलियुग एवं द्वापरयुग के सन्धिकाल में भगवान् विष्णु की आज्ञा से कृष्ण द्वैपायन के नये रूप में पुनरुद्भूत हुए। इस सन्दर्भ में अश्वघोष ने भी कुछ नए रहस्य उद्घाटित किये हैं- . 1. कृष्ण द्वैपायन ने वेदों का अलग-अलग संहिताओं में विभाजन किया। . 2. वशिष्ठ और शक्ति उनके पूर्वज थे। 3. वे सारस्वतवंशीय थे।३ व्यासवंश के मूल पुरुष ब्रह्मा थे, जिनके पुत्र वशिष्ठ तथा वशिष्ठ के पुत्र शक्ति थे, जिनके पुत्र पाराशर की पत्नी दाशराज की पुत्री सत्यवती (योजनानान्धा या मत्स्यगंधा) के पुत्र कृष्णद्वैपायन थे। / पुराणों के रचयिता वेदव्यास हैं। यह प्रायोवादं है, किन्तु पुराणों की रचना अनेक ऋषियों-मुनियों ने मिलकर की है—यही तथ्य कथन है, इस सन्दर्भ में पुराणास्थ कुछ प्रमाण उल्लिखित किये जा रहे हैं।" क. मनु के एक श्लोक की टिप्पणी करते हुए मेघातिथि ने लिखा है-“पुराणानि व्यासादि प्रणीतानि (न तु व्यास प्रणीतानि)” ख. मार्कण्डेय पुराण ब्रह्मा के मुख से पुराण (एकवचन में प्रयुक्त) निकला तथा बहुत से परमर्षियों ने पुराण संहिताओं का प्रणयन किया।" ग. कूर्मपुराण-मूलतः वेदव्यास (पदाधिकारी) ने प्रथम पुराण संहिता प्रणीत की, दोनों इतिहास (जयसंहिता, महाभारत) तथा पुराण संहिता की एक ही काल में रचना की तदनन्तर उनके शिष्य लोमहर्षण तथा उनके शिष्यत्रय (अकृत व्रत, सावणि, शांसपायन) ने मिलकर पुराण संहिताओं का संकलन किया। फिर इन्हीं का विकास 18 पुराणों के रूप में किया गया। तात्पर्य तथा पुराण परिचय / 40