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________________ कि कल्प, रहस्य, ब्राह्मण, उपनिषद्, इतिहास तथा पुराण के साथ सभी वेद निर्मित हुए।" यहाँ इतिहास-पुराण का सम्बन्ध वेदों से स्थापित किया है। शतपथ ब्राह्मण में अनुशासनादिक के साथ पुराण के स्वाध्याय का विधान है तथा उस समय में वैदिक वाङ्मय में इतिहास-पुराण का विशिष्ट स्थान माना जाता था।" ___ आरण्यक तथा उपनिषद् के अनुशीलन से प्रतीत होता है कि उस युग में इतिहास-पुराण पूर्वापेक्षया अधिक जनप्रिय तथा प्रचलित हो चुके थे। पुराणों को भी वेदों की भांति ईश्वर से नि:श्वसित माना जाता था। सूत्र ग्रन्थों में पुराणों की चर्चा ही नहीं, उसके श्लोक भी उद्धृत किये गये हैं। रामायण में पुराण का नामोल्लेख मात्र मिलता है। किन्तु महाभारत के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि उस समय तक केवल पुराण ही सामान्य रूप से प्रचलित नहीं थे, बल्कि उनकी कथाओं की संरचना तथा अष्टादश संख्या भी निर्धारित हो चुकी थी। उसके (महाभारत के) अनुसार “पुराणरूपी पूर्ण चन्द्रमा के द्वारा श्रुतिरूपी चन्द्रिका छिटकी हुई है।"२६ ____ महाभारत के पश्चात्वर्ती अर्थशास्त्र में पुराण को सत्प्रेरक बताया है तथा उनके वर्ण्य-विषय का परिचय भी दिया गया है। धर्मस्मृति में पुराणों का प्रचुर उल्लेख है, गौतम धर्मसूत्र में बहुश्रुत की परिभाषा देते हुए उसके लिये पुराण की दक्षता भी आवश्यक बतलाई है। इसी प्रकार अन्य स्मृति-ग्रन्थों में भी पुराण उल्लिखित हैं।२९ शुक्रनीति में पुराण का उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। _ दार्शनिक-गण के अन्तर्गत शबरस्वामी, कुमारिल, शंकराचार्य, आचार्य विश्वरूप, ने पुराणों के विषय में महत्वपूर्ण तथ्य उद्घाटित किये हैं। बाणभट्ट की कादम्बरी में पुराणों में विशेषतः वायुपुराण का उल्लेख प्राप्त होता है। उत्तरकादम्बरी३६ एवं हर्षचरित' में भी पुराण का नामोल्लेख है। - पूर्वोक्त ग्रन्थों में पुराण उद्धृत होने से पुराणों का काल उनसे पूर्ववर्ती होना चाहिए। कुछ आधुनिक विद्वानों का मत है कि पुराणों का आविर्भाव काल लगभग ईस्वी पूर्व 600. वर्ष से लेकर ईस्वी 200 वर्ष तक का है। इन्हीं 800 वर्षों के अन्तराल में पुराणों का निर्माण हुआ होगा, क्योंकि भारत की ये 8 शताब्दियाँ असाधारण बौद्धिक विकास और स्वातन्त्र्य की महत्वपूर्ण शताब्दियाँ रही हैं। इसी युग में जैन, बौद्ध एवं हिन्दूदर्शन निर्मित हुए। आचार्य शंकर, कुमारिल भट्ट, कथाकार बाणभट्ट का समय 700 ई. का है। विष्णुपुराण में मौर्य साम्राज्य का, मत्स्य पुराण में दाक्षिणात्य राजाओं का और वायुपुराण में गुप्तवंश का जो अविकल वर्णन मिलता है, उससे इन पुराणों के तत्सामयिक अस्तित्व का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।" 39 / पुराणों में जैन धर्म
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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