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________________ पुराण ऐतिहासिक, सामाजिक, परम्परागत प्राचीन मान्यताओं के परिवर्तन-क्रम में एक प्रमुख घटक है, धर्म-कर्म, साधना-आराधना, रीति-रिवाज की दृष्टि से वेदों की अपेक्षा कहीं अधिक विकसित, परिवर्तित, सरल तथा सुगम है। पुराण शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ ... महावैयाकरण पाणिनि के अनुसार पुराण शब्द की उत्पत्ति “पुरा भवं” (प्राचीन समय में होने वाला) इस अर्थ में 'सायंचिरंपाहणेपगेऽव्ययेभ्यष्टयुट्टलो तुट च* इस सूत्र से पुरा शब्द से ट्यु प्रत्यय करने एवं तुट् के आगम होने पर 'पुरातन' शब्द बनता है, किन्तु स्वयं पाणिनि ने ही दो सूत्रों में पुराण शब्द का प्रयोग किया है, जिससे तुडागम का अभाव निपातनात् सिद्ध होता है, 'ट्यु' प्रत्यय तथा अन्य प्रक्रिया द्वारा निष्पन्न पुराण शब्द द्वारा पुराण साहित्य की ऐतिहासिकता सूचित होती है। महर्षि यास्क ने 'पुराण' शब्द का निर्वचन करते हुए कहा कि 'पुरा नवं भवति' अर्थात् जो प्राचीन होकर भी नया होता है, वह ग्रन्थ पुराण कहलाता है। पुराणों में भी पुराण शब्द की व्युत्पत्ति बताई गई है। यथा-वायु पुराण में . “पुरा अनति” अर्थात् प्राचीनकाल में भी सजीव था; वह पुराण कहलाता है'२ / पद्मपुराण में इससे कुछ भिन्न व्युत्पत्ति है-'पुरा परम्परया वष्टि कामयते' अर्थात् जो प्राचीन परम्परा की कामना करता है, वह ग्रन्थ पुराण कहलाता है, इन सबसे भिन्न और तर्कसंगत व्युत्पत्ति ब्रह्माण्ड पुराण उपस्थित करता है-'पुरा एतत् अभूत' अर्थात् प्राचीन काल में ऐसा हुआ, इसकी जानकारी देने वाला ग्रन्थ पुराण है," यह व्युत्पत्ति वायुपुराण में भी है।५ सारांशतः प्राचीन परंपरा के प्रतिपादक ग्रन्थ जिनमें सृष्टि के विकासादि वर्णित हों ‘पुराण' नाम से अभिहित किये जाते हैं। पुराणों का काल पुराणों का आविर्भाव कब हुआ—इस प्रश्न का उत्तर भारतीय परंपरानुसार बहुत कठिन नहीं है क्योंकि प्रायः सभी प्राच्य पण्डित बिना हिचकिचाहट के पुराणों की वेदमूलकता को स्वीकार करते हैं। ऋग्वेद की कई ऋचाओं में पुराण शब्द का उल्लेख मिलता है१६ किन्तु वहाँ यह शब्द एकमात्र प्राचीनता का ही बोधक है, अथर्ववेद में पुराण शब्द इतिहास, गाथा तथा नाराशंसी शब्दों के साथ प्रयुक्त है। अथर्ववेद के अनुसार ऋक्, साम, छन्द (अथर्व) यजुर्वेद के साथ ही पुराण भी उस उच्छिष्ट से (यज्ञावशेष या. परमात्मा से) प्रादुर्भूत हुए हैं जिससे कि देवों की उत्पत्ति बतलाई गई है। ब्राह्मण साहित्य में भी 'पुराण' का बहुशः उल्लेख है। वैदिक काल में पल्लवित पौराणिक वाङ्मय ब्राह्मण युग में विकसित हो चुका था, गोपथ ब्राह्मण का कथन है पुराण परिचय / 38
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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