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________________ पुराण-परिचय भारतीय प्राचीन सांस्कृतिक निधियों में पुराण साहित्य अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पुराण प्राचीन तथा अर्वाचीन का संगम है। नई भाषा तथा शैली में वैदिक धर्म का क्रिया-कलापों का परिवर्तित रूप ही पुराण है। अतएव यह पुराण 'पुरा नवम्' निरूक्त्यनुसार वैदिक धर्म के पुनः संस्कारस्वरूप पौराणिक धर्म के रूप में अभ्युदय हुआ है। वेद-विज्ञान को मनोरंजन आख्यानों में परिवर्तित करना पुराणों का अभूतपूर्व कौशल रहा है। जन-समुदाय में धर्म एवं संस्कृति के प्रति श्रद्धा उत्पन्न करना तथा वेद-मंत्रों का माहात्म्य वर्णन करना पुराणों का प्रमुख कार्य है। पुराणों का महत्व प्राचीन ऐतिहासिक मान्यताओं तथा सांस्कृतिक एवं राज्यवंशादि के अनुसंधान हेतु महत्वपूर्ण सामग्री पुराणों में उपलब्ध है। पद्मपुराण के अनुसार, यथा जगत् के प्रकाश हेतु सूर्य का विग्रह अन्धकार समाप्त करता है, तथैव पुराण भी हृदय में प्रकाश का हेतु है, इसे पंचम वेद कहा गया है, भागवत तथा स्कन्दपुराण का भी यही मत है। हनुमानप्रसादजी पोद्दार ने पुराणों की महिमा के सन्दर्भ में लिखा है कि पुराणों में सब कुछ है यथा पुराण अध्यात्मशास्त्र है, दर्शनशास्त्र है, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, तन्त्र-मन्त्र शास्त्र है. कलाशास्त्र, इतिहास, जीवनीकोष, सनातन आर्य संस्कृति का स्वरूप और वेदों की सरस और सरलतम व्याख्या है। . . मत्स्यपुराण में पुराण विद्या में सर्वोपरि मानते हुए लिखा है 'पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्। अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गता: नारदीय पुराणानुसार पुराणों के अर्थ, वेद से भी अधिक स्पष्ट तथा प्रामाणिक मानना चाहिए क्योंकि समस्त वेद पुराणों में ही प्रतिष्ठित हैं / पारजिट के अनुसार-“ये प्राचीन एवं मध्यकालीन हिन्दू धर्म (वैदिक धर्म) के ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक आदि सभी सिद्धान्तों के विश्वकोष है / .. 37 / पुराणों में जैन धर्म
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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